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________________ ( १३९ ) उसे कहते हैं, जिसे कुछ उम्मीद हो । मैंने तो प्रमुखपद की कोई उम्मीद की ही नहीं ।" संघ प्रमुख जीवराज को विचार आया कि - 'प्रमुखपद के लिये मुख्य रूप से संघर्ष तो दो ही जनों में है -सूरचन्द्र और मुक्तिचन्द्र में । सूरचन्द्र का पक्ष कमजोर नहीं है तो मुक्तिचन्द्र का पक्ष भी न्यून नहीं है । किन्तु मैं किसी भी एक को नियुक्त कैसे कर सकता हूँ ! और मुझे इसका अधिकार ही क्या है ? अतः संघ - मुख्यों को ही यह कार्य सौंप दूं ।' संघ - मुख्यों और उम्मीदवारों को आमंत्रित किया गया । पत्रकार विविध बातें लिख रहे थे। लोगों में अफवाह थी कि 'क्यों बुलाया गया, इन सबको ? क्या लाभ ? ये परस्पर खूब लड़ेंगे ! ' संघ मुख्यों में कई विचार थे । कुछ सोच रहे थे - 'सूरचन्द्र ठीक हैं' तो कुछ सोच रहे थे - 'मुक्तिचन्द्र ठीक हैं, किन्तु उनमें पद-योग्य गांभीर्य नहीं है ।' कुछ कह रहे थे - 'सूरचन्द्र आये भले ही, परन्तु उन्हें निर्विरोध नहीं आने देना चाहिये ।' कुछ यों भी सोच रहे थे कि 'दो में से किसी एक की नियुक्ति संघ में फूट पैदा कर देगी । इसलिये दोनों सन्तुष्ट हो - ऐसा मार्ग निकालना चाहिये ।' परन्तु कई संघ मुख्यों को यह विचार पसंद नहीं था । अतः वे लघुचन्द्र को मनाने में लगे थे। उन्हें ऐसी आशा थी कि यदि लघुचन्द्र प्रमुखपद के लिये अपनी स्वीकृति दे दे तो सब कुछ शान्त हो जायेगा और संघ में कोई भी दरार नहीं पड़ेगी। किन्तु लघुचन्द्र देख रहा था कि बुद्धि-स्वातन्त्र्य के वातावरण में शासन सम्हालना सरल नहीं है । जिसका हम निर्वाह नहीं कर सकें, उस पद को लेने में क्या लाभ? यह मान-सन्मान की बात नहीं है । यह तो उत्तरदायित्व के निर्वाह की बात है । फिर सभी को सन्तुष्ट रखना अपने वश की बात नहीं है । अतः उसने मुख्यों से विनम्रतापूर्वक कहा - "मेरे प्रति आपकी सद्भावना के लिये
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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