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________________ ( ११७ ) जाती है । अतः वह विनाशक विचार ही करती है । जब क्रोधी की सद्बुद्धि नष्ट हो जाती है, तब वह दूसरे में सद्बुद्धि कैसे जगा सकेगा ? क्रोध के कारण क्रोध की प्रतिप्रक्रिया स्वरूप अन्य जनों में भी असद्बुद्धि उत्पन्न हो जाती है । अतः अन्य जनों का चिन्तन भी उसके अनुकूल नहीं होता है और ज्ञानियों की उसके प्रति माध्यस्थ भाव से युक्त अनुकम्पा से प्रेरित बुद्धि रहती है। ४. धैर्य हरे भरे वृक्ष के तुल्य है । जिसकी छाया में जीव भवताप से त्राण पा सकता है और उसके तले अन्य गुण भी उपसर्ग, प्रतिकूलता आदि के ताप से झुलसते नहीं हैं । उस धैर्यद्रुम को ही क्रोध आग. बनकर जला देता है । हरे वृक्ष को. आग एकदम नहीं जला सकती है । वैसे ही धैर्य के अस्तित्व में क्रोध आत्मा में प्रभावशाली नहीं बन सकता है। परन्तु जब वह तेजी में होता है, तब वह पहले धैर्य को ही नष्ट करता है । ५. विवेक ऐसा तरल आद्रोपम गुण है कि. जिससे व्यक्ति का व्यक्तित्व लचीला हो जाता है । योग्य व्यक्ति, स्थान, घटना आदि के प्रति झुकने, अनुकूल बनने, समभाव बहुमान रखने आदि के लिये नम्र भाव-मार्दव विवेक ही उत्पन्न करता है । क्रोध उस विवेक का वायु के सदृश बनकर शोषण कर लेता है और व्यक्ति को अत्यन्त कठोर बना देता है (क्रोधी अन्य जनों के विवेक को नष्ट करने में भी निमित्त बन सकता है । आराधना की हानि । लक्ख - देव - रुई - सत्तू, अप्प-गुरु - विभेयगो । भाव-धम्माहि कोहो खु, दूरं नेइ भवोयरे ॥६३॥ (आत्म-) लक्ष्य और देव की रुचि का शत्रु, आत्मा और सद्गुरु से विलगानेवाला क्रोध भाव (धर्म-) और (जिन-) धर्म से दूर निश्चय ही भव के उदर में ले जाता है।
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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