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रकाबियां और पुस्तकें भी हैं और स्वामित्व के पुस्तक भंडार भी।
सुखदशय्या तो आज भी प्रचलित है । डनलोप की गादियाँ आ गई हैं । उपानह भी खुल्ले रूप में आ गये हैं । वाहन का उपयोग सामान के लिए विशेष होता है । सवारी के लिए तो किसी वृद्ध अपंग या रोगी के क्वचित् उपयोग करने के प्रसंग बने हैं। अभी प्रारम्भ ही है । किसी क्रान्तिकारी ने हिम्मत कर वाहन के रूप में चेयर लाई वह अब आ गई हैं । मोटर में विहार भी हो जाता है, रात को कौन देखता है ? काले काच की मोटरे भक्तों ने सुपात्र (कुपात्र) दान के लोभ में दे दी है । धातु के पात्र में घड़े आ गये हैं। कोई-कोई वस्त्र धोने आदि काम के लिए पडिहारे याचकर भी लाते हैं.। धर्मशाला में रखे जाते है । प्रतिमा की रखवाली और
उत्सव प्रियता पडिमारक्खणपूया,समहिमजिणथुणणसवणपमुहाइ ।
इहलोयतवकारावणलहुहृत्थाइकरणमेवं ।।५९||
ये नामधारी साधु, प्रतिमा की रक्षा करते हैं, पूजा करते हैं और महिमापूर्वक-आडम्बर सहित जिन स्तवना और गायन वादिन्त्रादि श्रवण करते हैं अर्थात्-उत्सवादि की योजना करके उसमें गानतान और वादिन्त्र का कार्य करवाते हैं और उस मोहक दृश्य तथा कर्णप्रिय राग आदि को मस्त होकर सुनते हैं। इस लोक के लिए तप करवाते हैं और लघुकरण हस्तादि करण (हाथ की सफाई से जादुइ खेल दिखा कर मनोरंजन, अथवा
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