SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भोजन में, आने, जाने, खड़े रहने, बैठने और सोने में जो शिथिलता रखता हो ।।१३।। [ गु.त.वि.उ. ३ गाथा ८५] आवस्सयाइं न करइ, अहवा य करेइ हीणमहियाइं । गुरुवयणबला वि य, तहा भणिओ देसावसन्नोत्ति ||१४|| जो आवश्यकादि क्रिया नहीं करता हो, या करता हो तो भी हीनाधिक करता हो, वैसे ही गुरुवचन-बल-गुरु के विशेष रूप से कहने पर करता हो, वह देश अवसन्न है ।।१४।। कुशील कालविणयाइरहिओ, नाणकुन्सीलो य दंसणे इणमो । निस्संकियाइरहिओ, चरणकुसीलो इमो तिविहो होइ] ||१५|| ज्ञान के काल विनयादि आठ आचार से रहित-ज्ञानकुशील, दर्शन के निःशंकितादि आठ आचार से रहित-दर्शन कुशील और तीसरा चारित्रकुशील, ये कुशील तीन प्रकार के होते हैं ।।१५।। कोउयभूईकम्मे, पसिणापसिणे निमित्तमाजीवी । कक्ककरुयाइलक्खण-मुवजीवइ विज्जमंताई ||१६|| कौतुक कर्म (हाथ की सफाई-चालाकी आदि से आश्चर्य उत्पन्न करना अथवा पर के सौभाग्यादि के लिए स्नानादि करना करवाना) भूतिकर्म (भभूति, वासक्षेप से रोगादि की उपशांति करवाना) प्रश्नाप्रश्न (स्वप्नादि का लाभालाभ बताना) निमित्त (भूत, भविष्य बताना) आजीविका (जाति, शिल्प, तप, ज्ञानादि विशेषता बताकर आहारादि लेना) कक्ककुरुता (कल्क-प्रसूति आदि के लिए क्षारपातन अथवा उबटन, करुक्क-स्नान करवाना अथवा धूर्तता करना) लक्षण (हस्तरेखादि से लक्षण बताना) 5
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy