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________________ कषाय वाले भाव गुरु हैं। ये ही सुगुरु हैं । ।।२।। तहियाण इमे तहिया वितहा वितहाण जोगजुत्ताणं । दव्वाइविभेएहिं वेसपमाणेहिं भइयव्वा ||३|| यथार्थ योग युक्त (संयम और तप से युक्त) गुरु के चारों निक्षेप सत्य और अयथार्थ योग युक्त हो तो असत्य हैं । वेश के प्रमाण से द्रव्यादि भेद युक्त चारों निक्षेप भजना से जानना चाहिए। अर्थात् केवल वेशधारी-गुणरहित गुरु वर्जनीय है और गुणयुक्त साधु वेशधारी भावगुरु आदरणीय हैं। वेश की अपेक्षा आदरणीय, अनादरणीय की भजना है ।।३।। ...सुगुरु गुणओब्भिंतरभावे, अणगारनियंठसाहुमुणिपमुहा । पज्जाया उवमा पुण, पसन्नचित्ताइगुणविहाणा ||४|| जो गुणसहित आभ्यंतर भाव में रमने वाले हों, वे सुगुरु हैं। वे अनगार, निग्रंथ, साधु, मुनि इत्यादि अनेक नामों से जाने जाते हैं। वे प्रसन्न चित्त वाले और अनेक प्रकार के गुणों एवं उपमाओं से युक्त होते हैं ।।४।।। ससरीरेवि निरीहा, बज्झब्भतरपरिग्गहविप्पमुक्का | धम्मोवगरणमित्तं, धरंति चारितरक्खट्ठा ||५|| जो अपने शरीर के प्रति भी उपेक्षा रखते हैं, जो बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से रहित हैं, जो धर्मोपकरण को मात्र चारित्र रक्षण के लिए ही धारण करते हैं, वे गुरु होते हैं ।।५।। पंचेंदियदमणपरा, जिणुत्तसिद्धंतगहियपरमत्था । पंचसमिया तिगुत्ता, सरणं मह एरिसा गुरुणो ||६|| जो अपनी पाँचों इन्द्रियों को वश में रखने में तत्पर हैं, जो
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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