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________________ इस प्रकार वे अपना परिग्रह त्याग महाव्रत भंग करते हुए भी अपने को चारित्र संपन्न बताने के लिए आडम्बर खड़ा करके बाह्यदृष्टि वाले भोले और अज्ञ लोगों को ठगते हैं । अण्णो विसंवाओ समुदायम्मि वि मिलंति नो केसि । नियनियउक्करिसेणं सामायारिं विरोहंति || १४२|| शिथिलाचारी, साधु समुदाय में भी परस्पर विसंवाद चलता रहता है । वे सभी अपने-अपने उत्कर्ष (अभिमान) से एक दूसरे से मिलते नहीं हैं और एक दूसरे की समाचारी का विरोध करते हैं ।। १४२ ।। I वे नहीं मिलते हैं वहाँ तक उनका प्रभाव उतना अधिक नहीं होता, जितना मिलने पर होता है। यदि शिथिलाचारियों का समुदाय मिलकर एकमेक हो जाता है, तो पतन का मार्ग अत्यंत सुगम हो जाता है और बड़े-बड़े पाप भी दब जाते हैं । इतना ही नहीं वह एकमेक हुआ शिथिलाचारियों का समुदाय, शुद्धाचारी संतों पर अत्याचार करने पर भी उतारू हो जाता है । सव्वे वक्खाणपरा, सव्वे थिजणुवएससीला य । अहच्छंदकप्पजप्पा, वयंति किं धम्मपरसक्खं ||१४३ || वे सभी व्याख्यान देने के लिए तत्पर रहते हैं और सभी स्त्रियों को उपदेश देने में लगे रहते हैं । स्वच्छन्द के समान बोलते हैं और कहते हैं कि 'किसी दूसरे की साक्षी से धर्म होता है क्या ?' कइयों में दीक्षित होते ही व्याख्यानदाता और लेखक बनने की धुन सवार हो जाती है । वे अपने व्याख्यान को रोचक बनाने की धुन में लगे रहते हैं। कई महिलाओं की मण्डली में बैठकर उन्हें व्याख्यान सुनाने के लिए बड़े उत्सुक रहते हैं और I 139
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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