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________________ I जिस प्रकार सदाचारी, इज्जतदार एवं प्रतिष्ठित गृहस्थ, चोरों, जुआरियों, शराबियों और गुण्डों की संगति नहीं करते और उन असामाजिक तत्त्वों से बचते रहते हैं। वे समझते हैं कि इनकी संगति से प्रतिष्ठा गिरती है और बुराइयों को प्रोत्साहन मिलता है तथा सदाचार में क्षति पहुँचती है । उसी प्रकार धर्म की आराधना करने में तत्पर सुसाधुओं को भी दुराचारियों की संगति से दूर ही रहना चाहिए । जो साधु, दुराचारियों के साथ रहते हैं, उनसे संभोग सम्पर्क रखते हैं तथा किसी भी रूप में समर्थन करते हैं, वे दुराचार के समर्थक माने जाते हैं । इससे संयम का स्तर गिरता है और दुराचार बढ़ता है । इसलिए दुराचारियों की संगति का त्याग करना सदाचारियों, संयमियों एवं धर्म प्रेमियों का प्रथम कर्त्तव्य है । श्रेष्ठजन मरना स्वीकार कर लेते हैं, किन्तु सत्कार संमान या पद प्रतिष्ठा के लोभ से अथवा परीषह उपसर्ग या मृत्यु के भय से धर्म को धक्का मारने के लिए तैयार नहीं होते । सत्त्वहीन मनुष्य ही ऐसा करते हैं । वे अपनी सत्त्वहीनता छुपाने के लिए शांति, संगठन या संघ हित की ओट लेते हैं । | हीणायारो वि वरं मा कुसीलाणसंगमो भद्दं । जम्हा हीणी अप्पं नासइ सव्वं हु सीलनिहिं ॥ १०२ ॥ दुराचारियों की संगति से तो हीनाचार ( न्यूनाचार) फिर भी ठीक है, क्योंकि हीनाचार तो अल्प गुण की अथवा अपनी आत्मा की ही क्षति करता है, किन्तु दुराचारियों की संगति तो स्व पर उभय को-सभी को नष्ट करती है ।। १०२।। उपरोक्त गाथा अपेक्षापूर्वक कही गई है। आचार्यश्री हीनाचार के समर्थक नहीं । उन्होंने कहा कि दुराचारियों की संगति में 95
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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