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________________ कर्तव्य है । जो आचार्य अपने इस उत्तरदायित्व का पालन नहीं करते और स्वतः उन्मार्ग गामी बन जाते हैं, उन्मार्ग की प्ररूपणा करते हैं और उन्मार्ग प्ररूपक के सहायक बनते हैं, वे सावधाचार्य हैं, पापी आचार्य हैं। वे रक्षक नहीं धर्म-भक्षक हैं, हितैषी नहीं, हितशत्रु हैं। वह वैद्याचार्य कैसा, जो रोगियों को कुपथ्य सेवन से नहीं रोककर कुपथ्य सेवन की उन्हें खुली छूट दे दे एवं कुपथ्य सेवन करने वालों का सहायक बने । वे आचार्य, प्रजापालक नरेश के समान नहीं, किन्तु पल्लिपति तस्करराज के समान हैं, जिनके सैनिक, धर्म रूपी धन की लूट करते हैं। उनकी सरदारी में धर्मघातक शक्ति फूलती फलती है । वर्तमान में ऐसे आचार्य अनेक हैं जो पल्लिपति तस्करराज से भी बढ़कर है। जे लोइयकज्जरया धणट्ठीणो भत्तलोयकयथुणणा | सुविहियजणाण अहिया ते पासंडा कुसीला य ||९८|| जो आचार्य, लौकिक कार्यों में लीन रहते हैं, धन को चाहने वाले हैं, भक्त लोगों की स्तवना-प्रशंसा-स्तुति करने वाले हैं और सुसाधुओं के लिए दुःखदायक हैं, वे आचार्य पाषंडी एवं कुशीलिया हैं ।।९८।। आदरसत्कार के भूखे, स्वार्थी, चारित्र के ढीले और विपरीत दृष्ट आचार्य ही लौकिक कार्यों में रुचि लेते हैं और धन के 1. तुलना :- गच्छाचार पयन्ना गाथा २८ भट्ठायारो सूरि. श्रावक संघ को वैराग्य वर्द्धक प्रवचन न देकर केवल स्व संपद्राय की पुष्टी का प्रवचन करने, तक तो उन्मार्ग प्ररूपकता नहीं आती पर जब अन्य सामाचारी की निंदा की प्रवृत्ति होती है, तब वह उन्मार्ग प्ररुपकता हो जाती है। 91
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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