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(७८९) विमानको पहुंचा । अंतसमयमें श्रावक दीक्षा ले, तब प्रभावना आदिके लिये शक्त्यनुसार धर्ममें धन व्यय करे। जैसे कि, थरादके आभू संघवीने आतुरदीक्षाके अवसरपर (अंतसमय ) सात क्षेत्रों में सातकरोड धन व्यय किया। जिससे अंतसमय आनेपर संलेखना करके शत्रुजयआदि शुभतीर्थमें जाय
और निर्दोष स्थंडिल (जीवजंतु रहित भूमि ) में शास्त्रोक्तविधिके अनुसार चतुर्विध आहारका पञ्चखान कर आनंदादिकश्रावकोंकी भांति अनशन ग्रहण करे। कहा है कि- तपस्यासे और व्रतसे मोक्ष होता है, दानसे उत्तम भोग मिलता है और अनशनकर मृत्यु पानेसे इन्द्रत्व प्राप्त होता है। लौकिकशास्त्र में भी कहा है कि-हे अर्जुन ! विधिपूर्वक जलमें अंतसमय रहे तो सात हजार वर्षतक, अग्निमें पड़े तो दसहजार वर्षतक, झंपापात ( ऊंचे स्थानसे गिरना ) करे तो सोलहहजार वर्षतक भीषणसंग्राममें पडे तो साठहजार वर्षतक, गाय छुडानेके हेतु देहत्याग करे तो अस्सीहजार वर्षतक शुभ गति भोगता है, और अंतसमय अनशन करे तो अक्षय गति पाता है ।
पश्चात् सर्व अतिचारके परिहारके निमित्त चार शरणरूप आदि आराधना करे । दशद्वाररूप आराधना तो इस प्रकार है:१ अतिचारकी आलोयणा करना, २ व्रतादिक उच्चारण करना ३ जीवोंको खमाना, ४ अट्ठारहों पापस्थानकोंका त्याग करना,