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सहित समकित को भय, लोभ, लज्जा आदि दोषोंसे अतिचार न लगाते हुए एक मास तक पालना, और त्रिकाल देवपूजा आदि करना । २ व्रतप्रतिमा, उसमें दो मास तक खंडना तथा विराधना बिना पांच अणुव्रत पालना तथा प्रथमप्रतिमाकी क्रिया भी करना । ३ सामायिक प्रतिमा, उसमें तीन मास तक दोनों समय प्रमाद छोडकर दो बार सामायिक करना तथा पूर्वोक्त प्रतिमाकी क्रिया भी करना । ४ पौषधप्रतिमा उसमें पूर्वोक्त प्रतिमा के नियम सहित चार मास तक चार पर्वतिथिमें अखंडित और परिपूर्ण पौषध करना । ५ प्रतिमाप्रतिमा अर्थात् कायोत्सर्गप्रतिमा, उसमें पूर्वोक्तप्रतिमाकी क्रिया स हित पांच मास तक स्नानका त्यागकर, रात्रिमें चौविहार पच्चखान करके, दिनमें ब्रह्मचर्य पालना तथा धोतीका कांछ छूटी रख चार पर्वतिथिको घर में, घरके द्वारमें अथवा बाजार में परी
ह (अस) उपसर्गसे न डगमगते समग्र रात्रि तक काउस्सरंग करना । आगे जिन प्रतिमाओं का वर्णन किया जाता है, उन सबमें पूर्वोक्त प्रतिमाकी क्रिया सम्मिलित कर लेनी चाहिये । ६ ब्रह्मचर्यप्रतिमा उसमें छः मास पर्यंत निरतिचार ब्रह्मचर्य - व्रतका पालन करना । ७ सचितपरिहारप्रतिमा, उसमें सात मास तक सचित्तवस्तुका त्याग करना । ८ आरंभपरिहारप्र'तिमा, उसमें आठ मास तक कुछ भी आरंभ स्वयं न करना । ९ प्रेषणपरिहारप्रतिमा, उसमें नवमास तक अपने नौकरआदि
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