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( ७७३) तब बधाई देनेवालेको तीनलाख टंक दिये। इस तरह पेथडबिहार बना। तथा उसी पेथडने शत्रुजय पर्वतपर श्रीऋषभदेव भगवानका चैत्य एकवीसधडी सुवर्णसे चारोंतरफ मढाकर मेरुपर्वतकी भांति सुवर्णमय किया। गिरनार पर्वतपरके सुवर्णमय बलानक ( झरोखा ) का वृत्तांत इस प्रकार है--
गई चौबीसीमें उज्जयिनिनगरीमें तीसरे श्रीसागर केवलीकी पर्षदा देख कर नरवाहन राजाने पूछा कि, "मैं कब केवली होऊंगा ?" भगवानने कहा- “आगामीचौबीसीमें बावीशमें तीर्थंकर श्रीनेमीनाथ भगवान्के तीर्थमें तू केवली होगा” । यह सुन नरवाहनराजान दीक्षा ग्रहण की और आयु. ध्यके अंतमें ब्रह्मेद्र हो श्रीनेमिनाथभगवानकी वज्रमृत्तिकामय प्रतिमा बना उसकी दश सागरोपमतक पूजा करी । आयुष्यका अंत आया तब गिरनार पर्वत ऊपर सुवर्णरत्नमयप्रतिमावाले तीन गभारे ( मूर्तिगृह ) करके उनके सन्मुख एक सुवर्णमय झरोखा ( बलानक ) बनवाया; और उसमें उक्त वज्रमृत्तिकामय प्रतिमाकी स्थापना करी । अनुक्रमसे संघवी श्रीरत्नश्रेष्ठी महान् संघके साथ गिरनारपर यात्रा करने आया । विशेष हर्षसे स्नान करनेसे मृत्तिकामय (लेप्यमय) प्रतिमा गलगई। जिससे रत्नश्रेष्ठीको बडा खेद हुआ । साठ उपवास करनेसे प्रसन्न हुई अंबादेवीके वचनसे वह सुवर्णमयबलानककी प्रतिमा को लाया,