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(७४४) जिस घरमें वेध (छिद्र ) आदि दोष न होवे, सम्पूर्ण दल ( पाषाण, ईंट और काष्ठ ) नया होवे, अधिक द्वार न होवें, धान्यका संग्रह होवे, देवकी पूजा होती होवे, आदरसे जलआदिका छिटकाव होता हो, लाल परदा हो, झाडना पोंछनाआदि संस्कार सदैव होते हों, छोटे बडेकी मर्यादा भलीभांति पालन की जाती हो, सूर्यकी किरणें अन्दर प्रवेश न करती हों, दीपक प्रकाशित रहती हो, रोगियोंकी सूश्रूषा भलीभांति होती हो और थके हुए मनुष्यकी थकावट दूर की जाती हो, उस घरमें लक्ष्मी निवास करती है. इस प्रकार देश, काल, अपना धन तथा जातिआदिको उचित हो ऐसे बंधाये हुए घरको यथाविधि स्नात्र, साधर्मिवात्सल्य संघपूजाआदि करके श्रावकने काममें लेना चाहिये. शुभ मुहूर्त, तथा शकुनआदिका बल भी घर बंधवाने तथा उसमें प्रवेश करनेके अवसर पर अवश्य देखना चाहिये. इस प्रकार यथाविधि बंधाये हुए घरमें लक्ष्मीकी वृद्धिआदि होना दुर्लभ नहीं.
ऐसा सुनते हैं कि, उज्जयिनीनगरी में दांताक नामक श्रेष्ठीने अट्ठारह करोड स्वर्णमुद्राएं खर्च करके वास्तुशास्त्रमें कही हुई गीतके अनुसार एक सात मंजिलवाला महल तैयार कराया. उसके तैयार होनेमें बारह वर्ष लगे थे. जब दांताक उस महलमें रहने गया, तब रात्रिमें 'पडूं क्या ? पडूं क्या ?" ऐसा शब्द उसके सुनने में आया. इससे भयभीत हो उसने मूल्यके अनुसार