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प्रकाश ५, वर्षकृत्य. ( मूलगाथा )
पइवरिसं संघचण
साहम्मिअभत्तिजत्ततिगं ॥१२॥
जिणगिहि ण्हवणं जिणधण-
बुड्डी महपूअ धम्मजागरिआ ॥
सुअआ उजवणं,
तह तित्थभावणा सोही ||१३||
( चतुर्थप्रकाश में चातुर्मासिककृत्यका वर्णन किया. अब रही हुई अर्धगाथा तथा तेरहवीं गाथाद्वारा एकादश द्वारसे वर्षकृत्य कहते हैं . )
संक्षपार्थ:- सुश्रावकने प्रतिवर्ष १ संघकी पूजा, २ साधर्मिकवात्सल्य, ३ अट्ठाइ रथ-तीर्थ ऐसी तीन यात्राएं, ४ जिन-मंदिर में स्नात्रमहोत्सव, ५ देवद्रव्यकी वृद्धि, ६ महापूजा, ७ रात्रिको धर्मजागरिका ( रात्रि जागरण ), ८ श्रुतज्ञानपूजा, ९ उजमणा, १० शासनकी प्रभावना, और ११ आलोयणा इतने धर्मकृत्य करना. (१२-१३ )
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विस्तारार्थ : श्रावकने प्रतिवर्ष जघन्यसे एक बार भी १ चतुर्विध श्रीसंघकी पूजा, २ साधर्मिक वात्सल्य, ३ तीर्थयात्रा, रथयात्रा और अठ्ठाईयात्रा, ये तीन यात्राएं, ४ जिन-मंदिरमें स्नात्रमहोत्सव, ५ माला पहिरना, इन्द्रमालाआदि पहिरना,