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(६९३) उपद्रवका नाश करनेवाला और दूसरा इष्टवस्तुको देनेवाला ऐसे दो रत्न दिये. कुमारने उसको पूछा कि "तू कौन है ?" उसने उत्तर दिया--जब तू अपने नगरको जावेगा तब मुनिराजके वचनसे मेरा चरित्र जानेगा."
___ अनन्तर उन रत्नोंके प्रभावसे राजकुमार सर्वत्र यथेष्ट विलास करता रहा. एक समय पडहका उद्घोष सुननेसे उसे ज्ञात हुआ कि- "कुसुमपुरका राजा देवशमा आंखके दर्दसे तीन वेदना भोग रहा है." तदनुसार उसने शीघ्र वहां जाकर रत्नके प्रभावसे नेत्र पीडा दूर करी. राजाने प्रसन्न होकर राजकुमारको अपना राज्य तथा पुण्यश्री नामक कन्या दे स्वयं दीक्षा ग्रहण कर ली, पश्चात् उसके (राजकुमारके) पिताने भी उसे राज्य दे कर दीक्षा ली. इस प्रकार राजकुमार दो राज्य भोगने लगा. एक समय विज्ञानी देवशर्माराजर्षिने कुमारको पूर्वभवका वृत्तान्त कहा. यथाः--क्षेमापुरीमें सुव्रत नामक श्रेष्ठी था, उसने गुरुके पास अपनी शक्तिके अनुसार चतुर्माससंबंधी नियम लिये थे. उसका एक नौकर था, वह भी प्रत्येक वर्षाकालके चातुर्मासमें रात्रिभोजन तथा मद्यमांसादि सेवनका नियम करता था. मरनेपर वही चाकर तू राजकुमार हुआ है, और सुव्रतश्रेष्ठीका जीव महान् ऋद्धिशाली देवता हुआ है. उसने पूर्वभवकी प्रीतिसे तुझे दो रत्न दिये.' इस प्रकार पूर्वभव सुनकर कुमारको जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ. तथा वह अनेकप्रकारके