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(६३९) सूत्रके पाठ तक विधि कह प्रतिक्रमण करना पश्चात् आगे कहा जाता है उसके अनुसार अनुक्रमसे भली भांति करना ॥ २८ ।।
मुहपोत्ती वंदणयं, संबुद्धाखामणं तहाऽऽलोए ॥ वंदण पत्तेअक्खा -मणं च वंदणयमह सुत्तं ॥ २९ ॥
अर्थः-प्रथम मुंहपत्तिका पडिलेहन कर लेना, तथा वंदन करना, पश्चात् संबुद्धाखामणा तथा अतिचारकी आलोचना कर बादमें वंदना तथा प्रत्येकखामणा करना, तदनंतर वंदन करके पाक्षिकसूत्र कहना ॥ २९ ॥
सुत्तं अम्भुट्ठाणं, उस्सग्गो पुत्ति वंदणं तहय ॥ पज्जंतिअखामणय, तह चउरो छोभवंदणया ॥ ३०॥
अर्थः-पश्चात् प्रतिक्रमणसूत्र कहकर काउस्सग्ग सूत्रका पाठ कह काउस्सग्ग करना. तत्पश्चात् मुंहपत्ति पडिलेहन कर वंदना करके पार्यतिक खामणा करे और चार थोभवंदना करे ॥३०॥
पुश्वविहिणेव सव्वं, देवसिअं वंदणाइ जो कुणइ ॥ सिज्जसुरीउस्सग्गे, भेओ संतिथयपढणे अ ॥ ३१ ॥
अर्थः... पश्चात् पूर्वोक्तविधिके अनुसार देवसीप्रतिक्रमण वंदनादिक करना. उसमें सिज्जसुरीका काउस्सग्ग और अजितशांतिस्तव पाठमें कहना इतना फेरफार है ॥ ३१॥
एवं चिअ चउमासे, वरिसे अ जहक्कम विही णेओ ॥ पक्खचउमासवरिसे-सु नवरि नाममि नाणत्तं ॥ ३२॥