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से सन्मार्ग में लगाकर यथाशक्ति अनुकम्पा करे. श्रीभगवती - प्रमुख सूत्रों में श्रावक वर्णन के प्रसंग में " अवंगुअदुआरा " यह विशेषण देकर " श्रावकने साधुआदि लोगोंके प्रवेश करनेके लिये हमेशा द्वार खुला रखना " ऐसा कहा है तीर्थंकरोंने भी वत्सर दान देकर दीनलोगोंका उद्धार किया. विक्रमराजाने भी अपने राज्य के सर्वलोगोंको ऋण रहित किया, जिससे उसके नामका संवत् चला. दुष्कालआदि आपत्तिके समय लोगोंको सहायता देने से महान् फल प्राप्त होता है. कहा है कि--शिष्य की विनय से योद्धा की समरभूमिमें, मित्रकी संकटके समय और दानकी दुर्भिक्ष पडनेसे परीक्षा होती है. संवत् १३१५ में दुर्भिक्ष पडा था, तब भद्रेश्वरनगरनिवासी श्रीमाल - जाति जग शाहने एक सौ बारह सदावर्त स्थापित कर दान दिया था. कहा है कि दुर्भिक्ष के समय हम्मीरने बारह, वीसलदेवने आठ, बादशाहने एकवीस और जगडुशाहने एक हजार धान्यके मूडे ( माप विशेष ) दिये. उसी प्रकार अणहिल्लपुरपाटणमें " सिंधाक " नाम एक बडा सराफ हुआ था. उसने अश्व, गज, बडे २ महल आदि अपार ऋद्धि उपार्जन करी थी. संवत् १४२९ में उसने आठ मंदिर बंधाये और महायात्राएं क. एक समय उसने ज्योतिषी के कहने परसे भविष्य में आनेवाले दुर्भिक्षका हाल सुना और दो लाख मन धान्य संग्रह करके रखा जिससे दुर्भिक्ष पडने पर भावकी तेजी से उसे बहुत लाभ