________________
(५८३) रक्तवर्ण हो रहा था, कोई कोई जगह स्वर्णका कार्य होनेसे मेरूपर्वत. की शाखासा प्रतीत होता था, कहीं हाररत्न लगे हुए होनेसे हरीघास युक्त भूमिसी मनोवेधक शोभा हो रही थी, किसी जगह आकाशके समान पारदर्शक स्फटिकरत्न जड़े होनेसे स्थल होत हुए आकाशकी भांति भ्रांति होती थी, कोई स्थानमें सूर्यकान्तमाणि सूर्यकिरणके स्पर्शसे आनधारण कर रही थी तथा किसी जगह चन्द्रकान्तमणि चन्द्रकिरणके स्पर्शसे अमृत वर्षा कर रही थी. सारांश यह कि वह महल इतना दिव्य था जिसका वर्णन ही नहीं किया जा सक्ता.
रत्नसारकुमार दोगुंदकदेवताकी भांति दोनों स्त्रियों के साथ उक्त महलमें नानाप्रकारका विषयसुख भोगने लगा. मनुष्यभवमें सर्वार्थसिद्धिपन ( सर्वार्थसिद्धविमानका सुख ) पाना यद्यपि दुर्लभ है, तथापि कुमारने तीर्थकी भक्तिसे दिव्यऋद्धिके उपभोग तथा दो सुंदर स्त्रिओंके लाभसे वर्तमान भव. ही में प्राप्त किया. गोभद्रदेवताने शालिभद्रको पिताके सम्बन्धमे संपूर्ण भोग दिये इसमें क्या आश्चर्य ? परंतु यह तो बडी ही आश्चर्यकी बात है कि चक्रेश्वरीके साथ कुमारका मातापुत्रआदि किसी जातिका सम्बंध न होते उसने उसे परिपूर्ण भोग दिये. अथवा पूर्वभवके प्रबलपुण्यका उदय होनेपर आश्चर्य ही क्या है ? भरतचक्रवर्तीने मनुष्यभव ही में क्या चिरकाल तक गंगादेवीके साथ कामभोग नहीं भोगा था ?