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जैसे अन्य समस्तजीवोंको पीछे छोड़ देता है, उसी प्रकार जब कुमारने उसे आस्कंदित नामक पांचवी गतिको पहुंचाया, तो उसने अन्य सर्वअश्वोंको पीछे छोड दिया । इतनी ही देरमें श्रेष्ठीके घरमें जो एक पाला हुआ तोता था उसने उस कार्यका तत्व विचार कर श्रेष्ठी वसुसारको कहा कि" हे तात ! मेरा भाई रत्नसार कुमार इसी समय अश्वरत्नपर आरूढ होकर बडेवेगसे जा रहा है, कुमार कौतुक-रसिक व चपल प्रकृति है; अश्व भी हरिणके समान बड़ा ही चालाक व उछल उछल कर चलनेवाला है, और दैवकी गति बिजलीकी दमकसे भी अत्यन्त विचित्र है, इसलिये हम नहीं जान सकते कि इस कृत्यका क्या परिणाम होगा ? सौभाग्यनिधि मेरे भाईका अशुभ तो कहीं भी नहीं हो सकता, तथापि स्नेही मनुष्योंके मनमें अपनी जिस पर प्रीति होती है, उसके विषय में अशुभ कल्पनाएं हुए बिना नहीं रहती । सिंह जहां जाता है वहीं अपनी प्रभुता चलाता है, तथापि उसकी माता सिंहनीका मन अपने पुत्रके सम्बन्धमें अशुभ कल्पना करके अवश्य दुःखी होता है । ऐसी अवस्थामें भी शक्त्यनुसार यत्न रखना यही 'पानी पहिले पाल बांधना' यह युक्तिसे अच्छा जान पडता है । इसलिये हे तात ! हे स्वामिन् ! यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं अतिशीघ्र कुमारकी शोधके लिये जाऊं। दैव न करे, और कदाचित् कुमारपर कोई आपत्ति आ पडे, तो मैं हर्षोत्पा