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पात्र मनुष्योंसे कभी डाह नहीं करना । अपनी जाति पर आये हुए संकटकी उपेक्षा न करना, बल्कि आदर पूर्वक जातिका संप होवे वैसा कार्य करना । क्योंकि ऐसा न करनेसे मान्यपुरुषोंकी मानखंडना व अपयश होता है । अपनी जातिको छोड कर अन्य जातिमें आसक्त होनेवाले मनुष्य कुकर्दम राजाकी भांति मरणान्त कष्ट पाते हैं । परस्परके कलहसे प्रायः ज्ञातियोंका नाश होता है, और यदि संपसे रहें तो जलमें कमलिनीकी भांति वृद्धि पाती हैं । मित्र, साधर्मी, जातिका अगुआ, गुणी तथा अपनी पुत्रहीन बहिन इतने मनुष्योंको दैववश दरिद्रता आजाने पर अवश्य पोषण करना चाहिये । जिसको बडप्पन पसंद हो, उसने सारथीका कार्य, दूसरेकी वस्तुका क्रय विक्रय तथा अपने कुलके अयोग्य कार्य करनेको उद्यत न होना चाहिये ___ महाभारतआदि ग्रंथों में भी कहा है कि- मनुष्यने ब्राह्ममुहूर्तमें उठना और धर्म तथा अर्थका विचार करना । उदय होते हुए तथा अस्त होते हुए सूर्यको न देखना । मनुष्यने दिवसमें उत्तरदिशाको, रात्रिमें दक्षिणदिशाको और कोई आपत्ति होवे तो किसी भी दिशाको मुख करके मलमूत्रका त्याग करना। आचमन करके देवपूजाआदि करना, गुरुको वन्दना करना, इसी प्रकार भोजन करना । हे राजा ! ज्ञानीपुरुषने धन संपादन करनेके लिये अवश्य ही यत्न करना चाहिये । कारण कि धन होने ही से धर्म, कामआदि होते हैं। जितना