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कुछ तो भी उपकारका बदला दूंगा, इस भय से यह उत्तम प्राणी ( तोता ) उपकार करके कहीं दूर चला गया, इसमें कोई संशय नहीं । कहा है कि
इयमुच्चधियामलौकिकी महती काऽपि कठोरचित्तता ।
उपकृत्य भवंति दूरतः परतः प्रत्युपकारभीरवः ॥ १ ॥ बुद्धिशाली सत्पुरुषोंके मनकी कोई अलौकिक तथा बहुत ही कठोरता है कि, वे उपकार करके प्रत्युपकारके भय से शीघ्र इधर उधर हो जाते हैं । ऐसा ज्ञानी जीव निरंतर पास रहे तो कठिन प्रसंग आदि सबकुछ ज्ञात हो सकता है । कोई भी आपत्ति हो वह सहज में दूर की जा सकती है । अथवा ऐसा सहायक जीव प्रायः मिलना ही दुर्लभ है। कदाचित मिल भी जावे तो दरीद्रीके हाथमें आये हुए धनकी भांति अधिक समय तक पास नहीं रह सकता । यह तोता कौन है ? यह इतना जानकार कैसे हुआ ? मुझ पर यह इतना दयालु क्यों ? कहां से आया ? और इस वृक्ष परसे कहां गया ? यह सब घटना कैसे हुई ? मेरी सेना यहां किस प्रकार आई ? इत्यादिक मुझे संशय है । परंतु जैसे गुफा के अंदर के अधकारको बिना दीपक कोई दूर नहीं कर सकता, वैसे ही उस तोतेके बिना इस संशयको कौन दूर कर सकता है ? इस प्रकारके नाना विचारोंसे राजा व्यग्र होगया । इतने में उसके मुख्य सेवकोंने इस घटनाका वर्णन पूछा । राजाने आरंभ से
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