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ही कुछ अन्य अपकृत्य करे, इसीलिये स्त्रियोंके साथ सदा नरमाईका बर्ताव करना चाहिये कभी भी कठोरता न बताना. कहा है कि, “पाश्चालः स्त्रीषु मार्दवम्" (पाञ्चाल ऋषि कहते हैं कि, स्त्रियोंसे नरमाई रखना.) नरमाई ही से स्त्रियां वशमें होती हैं. कारण कि, इसी रीतिसे उनसे सर्व कार्य सिद्ध हुए दृष्टि आते हैं। और यदि नरमाई न होवे तो कार्यसिद्धीके बदले कार्यमें बिगाड़ हुआ भी अनुभवमें आता है. निर्गुणी स्त्री होवे तो अधिक नरमाईसे काम लेनेकी चिन्ता रखना चाहिये. देहमें जीव है तब तक मजबूत बेड़ीके समान साथ लगी हुई उस निर्गुणी स्त्री ही से किसी भी प्रकारसे गृहसूत्र चलाना तथा सर्वप्रकारसे निर्वाह कर लेना चाहिये. कारण कि, " गृहिणी वही घर" ऐसा शास्त्रवचन है । ३ "धनके लाभहानिकी बात न करना" ऐसा कहनेका कारण यह है कि, पुरुष धनका लाभ स्त्रीसंमुख प्रकट करे, तो वह अपरिमित द्रव्य खर्च करने लगे और उसके सन्मुख धनहानिकी बात करे तो वह तुच्छतासे जहां तहां वह बात प्रकट कर पतिकी चिरकाल संचित बडप्पन गुमावे । ४ घरमेंकी गुप्त सलाह उसके सन्मुख न प्रकट करनेका कारण यह है कि, स्त्री स्वभाव ही से कोमल हृदय होनेसे उसके मुंहमें गुप्त बात रह नहीं सकती, वह अपनी सहेलियों आदिके सन्मुख प्रकट कर देती है, जिससे निश्चित किये हुए भावी-कार्य निष्फल हो जाते हैं।