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करले, तब उसके साथ वास्तविक प्रेमसे बातचीत करे. उपरोक्त उपाय करने पर भी यदि वह मार्ग पर न आवे तो " उसकी यह प्रकृति ही है" ऐसा तत्व समझकर उसकी उपेक्षा करे. (११) "तपणइणिपुत्ताइसु, समदिट्ठी होइ दाणलम्माणे ॥ सावक्कांमि उ इत्तो, सविसेसं कुणइ सव्वंपि ॥ १२ ॥ अर्थ:--भाईके स्त्रीपुत्रादिकमें दान, आदरआदि विषय में समान दृष्टि रखना, अर्थात् अपने स्त्रीपुत्रादिकी भांति ही उन की भी आसना वासना करना तथा सौतेले भाई के स्त्रीपुत्रादिकों का मानआदि तो अपने स्त्रीपुत्रादिकोंसे भी अधिक रखना. कारण कि, सौतेले भाईके सम्बन्ध में तनिक भी अंतर प्रकट हो तो उनके मन बिगडते हैं, व लोकमें भी अपवाद होता है. इसी प्रकार अपने पितासमान, मातासमान तथा माईसमान लोगों के सम्बन्ध में भी उनकी योग्यतानुसार उचितआचरण ध्यान में लेना चाहिये. कहा है कि-
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१ उत्पन्न करनेवाला, २ पालन करनेवाला, ३ विद्या देनेवाला, ४ अन्नवस्त्र देनेवाला और ५ जविको बचानेवाला, ये पांचों पिता कहलाते हैं. १ राजाकी स्त्री, २ गुरुकी स्त्री, ३ अपनी स्त्रीकी माता, ४ अपनी माता और ५ धायमाता, ये पांचों “ माता " कहलाती हैं । १ सहोदर भाई, २ सहपाठी, ३ मित्र, ४ रुग्णावस्था में शुश्रुषा करनेवाला और ५ मार्ग में बातचीत करके मित्रता करनेवाला, ये पांचों " भाई " कहलाते