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नक्षत्र और वही जल है किन्तु पात्र के फेरफार से परिणाम में कितनी भिन्नता होजाती है ? । इस विषय में अर्बुद ( आबू ) पर्वत के ऊपर जिनमंदिर बनानेवाले विमलमंत्रीआदिके दृष्टान्त लोक प्रसिद्ध हैं । भारी आरंभ, समारम्भ आदि अनुचित कर्म करके एकत्रित किया हुआ द्रव्य धर्मकृत्य में न व्यय किया जावे तो उस द्रव्यसे इसलोक में अपयश और परलोकमें अवश्य ही नरक मिलता है । इस पर मम्मणश्रेष्ठीआदिका दृष्टान्त समझो ।
४ अन्याय से उपार्जन किया हुआ द्रव्य और कुपात्रदान इन दोनों योगसे चौथा भंग होता है । इससे मनुष्य इस लोकमें तिरस्कृत होता है और परलोकमें नरकादिक दुर्गतिमें जाता है । इसलिये यह चौथा भंग अवश्य वर्जनीय है । कहा है कि- अन्याय से कमाये हुए धनका दान देने में बहुत दोष है। यह बात गायको मारकर कौएको तृप्त करने के समान है । अन्यायोपार्जितधनसे लोग जो श्राद्ध करते हैं, उससे चांडाल, भील और ऐसे ही हलकी जाति के लोग तृप्त होजाते हैं । न्यायसे उपार्जन किया हुआ थोडासा भी द्रव्य यदि सुपात्रको दिया जाय तो उससे कल्याण होता है. परन्तु अन्याय से उपार्जन किया हुआ बहुतसा द्रव्य दिया जाय तो भी उससे कुछ भी सुफल नहीं प्राप्त हो सकता । अन्यायापार्जितद्रव्यसे जो मनुष्य अपने कल्याणकी इच्छा करता है वह मानो कालकूट विष भक्षण करके जीवनकी आशा रखता है | अन्यायमार्गसे एकत्रित किये