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( २४ ) ऋषिने उत्तर दिया कि "मैं मार्ग आदि नहीं जानता हूं" तब राजा बोला कि 'तो आपको मेरे नाम इत्यादि कैसे ज्ञात हुए ?'
__ ऋषि बोले-“हे राजन् ! सुन । एक वक्त मैंने मेरी इस नवयौवना कन्याको आनन्दसे देख कर विचार किया कि इसे योग्य वर कौन मिलेगा ? इतनेमें आम्रके वृक्ष पर बैठे हुए एक तोतेने मुझसे कहा--"हे गांगलि ! वृथा चिंता न कर । ऋतुध्वज राजाके पुत्र मृगध्वज राजाको मैं आज ही इस जिन-मन्दिरमें बुला लाता हूं । जिस प्रकार कल्पवली, कल्पवृक्षको वरने योग्य है उसी प्रकार तेरी यह कन्या जगतमें श्रेष्ठ राजा मृगध्वजको वरनेके योग्य है; इसमें लेश मात्र भी संशय नहीं.” यह कह कर तोता उड गया और कुछ देरके बाद ही हे राजन् ! आप आये और पश्चात् धरोहर वस्तु जिस तरह वापस देते हैं वैसे मैंने आनन्दसे यह कन्या आपको दी । इससे अधिक मैं कुछ नहीं जानता. यह कह कर ऋषि चुप होगये। राजाने विचार किया कि "अब क्या करना चाहिये ?"
इतने ही में अबसरज्ञाता पुरुषकी भांति तोतेने शीघ्र आकर कहा कि, "हे राजन् ! आ, आ ! मैं तुझे मार्ग दिखाता हूं। यद्यपि मैं जातिका एक क्षुद्र पक्षी हूं तथापि मैं आश्रित ( मेरे विश्वास पर रहे हुए) जनकी उपेक्षा नहीं करता । अपने ऊपर विश्वास रख कर बैठा हुआ कोई साधारण जीव होवे उसकी भी उपेक्षा नहीं करना चाहिये तिस पर बडेकी उपेक्षा न करना