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परिग्रहपरिमाणव्रतका खंडन होनेके भयसे नगरको छोडकर बाहर चला गया. उधर कोई राजा मरगया था. उसके संतान न होनेके कारण, उसकी गादी पर किसी योग्य पुरुषको बैठानेके निमित्त मंत्रीआदि लोगोंने पट्टहाथाकी सूंडमें अभिषेक कलश दे रखा था. उस हाथीने आकर इस (विद्यापति श्रेष्ठी) पर अभिषेक किया, तदनंतर आकाशवाणीके कथनानुसार विद्यापतिने राजाके तौर पर जिन-प्रतिमाकी स्थापना करके राज्य संचालन किया, तथा क्रमशः वह पांचवें भवमें मोक्षको प्राप्त हुआ.
न्यायपूर्वक धन उपार्जन करनेवाले मनुष्य पर कोई भी शक नहीं रखता, बल्कि हरस्थानमें उसकी प्रशंसा होती है. प्रायः उसकी किसी प्रकारकी हानि भी नहीं होती, और उसकी सुखसमाधिआदि दिन प्रतिदिन वृद्धिको प्राप्ति होती है.
इसलिये उपरोक्त रीतिके अनुसार धनोपार्जन करना इसलोक तथा परलोकमें लाभकारी है. कहा है कि
सर्वत्र शुचयो धीराः, स्वकर्भबलगर्विताः ।
कुकर्मनिहतात्मानः, पापाः सर्वत्र शङ्किताः ॥ १ ॥ पवित्र पुरुष अपने शुद्धाचरणके अभिमानके बलसे सब जगह धैर्यसे रहते हैं. परन्तु पापी पुरुष अपने कुकर्मसे वेधित होनेके कारण सब जगह मनमें शंकायुक्त रहते हैं. यथाः