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________________ (४२४) कारण कि, अपने यदि उसके घर जावें तो अपना कुछ भी आदर सत्कार नहीं होता, और वह जो अपने घर आवे तो अपनेको शक्तिसे अधिक धनव्यय करके उसकी मेहमानी करनी पड़ती है. इस प्रकार यह बात युक्तिवाली है अवश्य तथापि किसी प्रकार जो बडेके साथ प्रीति होजाय तो उससे दूसरेसे न बन सकें ऐसे अपने कार्य सिद्ध हो सकते हैं, तथा अन्य भी बहुतसे लाभ होते हैं. कहा है कि--- आपणपे प्रभु होइए, के प्रभु कीजे हत्थ ॥ कज करेवा माणुसह, अवरो मग्ग न अच्छ ॥१॥ बडे मनुष्यने हलके मनुष्यसे भी मित्रता करना, कारण कि प्रसंग आने पर वह भी सहायता कर सकता है ? पंचोपाख्यानमें कहा है कि-बलवान व दुर्बल दोनों प्रकारके मित्र करना चाहिये, देखो, वनमें बन्धनमें पडे हुए हाीके झुंडको चूहेने छुडाया. क्षुद्रजीवसे हो सके ऐसे काम सर्व बडे मनुष्य एकत्र होजायँ तो भी उनसे नहीं हो सकते. सुईका कार्य सुई ही कर सकती है, वह खड्गआदि शस्त्रोंसे नहीं हो सकता. तृणका कार्य तृण ही कर सकता है, हाथीआदि नहीं. कहा भी है कि--तृण, धान्य, नमक, अग्नि, जल, काजल, गोबर, माटी, पत्थर, राख, लोहा, सुई, औषधि चूर्ण और कूची इत्यादि बस्तुएं अपना कार्य आप ही कर सकती हैं, अन्य वस्तुसे नहीं होता. दुर्जनके साथ भी वचनकी सरलता आदि दाक्षिण्यता रखना चाहिये. कहा है कि
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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