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(४०१) किये. जिससे सब मिलकर एक करोड आठ लाख द्रम्म धर्मखाते गये. आभडके पुत्रोंने और भी आठ लाख द्रम्म धर्मकृत्यमें व्यय करनेका संकल्प किया. तदनन्तर कालसमय आने पर आभड अनशन कर स्वर्गको गया""""इत्यादि.
पूर्वभवमें किये हुए दुष्कृतके उदयसे पुनः पूर्ववत् अवस्था न आवे, तो भी मनमें धैर्य रखना कारण कि, आपत्तिकालरूप समुद्र में डूबते हुए जीवको धीरज नौकाके समान है. सर्व दिन सरीखे किसके रहते हैं ? कहा है कि •
को इत्थ सया सुहिओ?, कस्स व लच्छी ? थिराई पिम्नाई? । को मच्चुणा न गसिओ?, को गिद्धो नेव विसएसु ? ॥१॥
इस संसारमें सदा ही कौन सुखी है ? लक्ष्मी किसके पास स्थिर रही ? स्थिर प्रेम कहां है ? मृत्युके वशमें कौन नहीं ?
और विषयासक्त कौन नहीं ? बुरी दशा आने पर सर्वसुखके मूल संतोष ही को नित्य मनमें रखना चाहिये, अन्यथा चिंतासे इस लोकके तथा परलोकके भी कार्य नष्ट होजाते हैं । कहा है किचिंता नामक नदी आशारूप पानीसे परिपूर्ण होकर बहती है. हे मूढजीव ! तू उसमें डूबता है, इसलिये इसमें से पार करनेवाले संतोषरूप वहाणका आश्रय कर नानाप्रकारके उपाय करने पर भी जो ऐसा मालूम पडे कि, “ अपनी भाग्यदशा ही हीन है." तो युक्तिपूर्वक किसी भाग्यशाली पुरुषका आश्रय करना. कारण