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यह कह कर तोता तुरंत वृक्ष परसे उडा । यह देख कर मनमें अत्यंत उत्सुक हुए राजाने चिल्लाकर सेवकों से कहा कि रे खिदमतगारों ! मेरा पवन समान वेगसे चलनेवाला सन्तान्वय नामक घोडा शीघ्र तैयार करके यहां लाओ ? "
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ज्यों ही उन्होंने घोडेको लाकर उपस्थित किया त्यों ही करोडों राजाओं का राजराजेश्वर चक्रवर्ती मृगध्वज घोडे पर चढ कर उस तोते पछेि चला । जिम तरह दूरके लोगोंनें तोतेकी बाणी नहीं सुनी वैसे ही किसी देवी कारण से पासका भी कोई मनुष्य कुछ सुन समझ न सका । इससे मंत्री आदि राजाकी इस एकाएक कृतिको देख कर घबरा गये और कुछ दूर तक राजा के पीछे गये किंतु अन्तमें निराश होकर वापस लौट आये। इधर आगे तोता व पीछे राजा दोनों पवन वेगसे चलते हुए ५०० योजन पार कर गये । परंतु कोई दिव्य प्रभावसे इतनी दूर निकलजाने पर भी ये बिल्कुल न थके और जिस तरह कर्म से खिंचा हुआ मनुष्य भवान्तरमें भटकता है उसी भांति विघ्नसे बचानेवाले उस तोते से खिंचा हुआ राजा मृगध्वज एक घने जंगल में पहुंचा ।
महान पुरुषों में भी पूर्वभवका संस्कार कैसा प्रबल होता ? नाम धाम कुछ भी ज्ञात न होने पर भी देखो राजा उस तोते के साथ होगया । उस वनमें मानों मेरुपर्वतका एक खंड हो, ऐसा कल्याणकारी व दिव्य कान्तिधारी श्री आदिनाथका