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चार लोगस्सका कायोत्सर्ग करे. पश्चात् सज्झाय संदिसाहु ? और सज्झाय करूं १, इस रीतिसे आदेश मांगकर दो खमासमण देकर सज्झाय करे. यह संध्यासमयकी वंदनविधि है ।
गुरुके किसी काम में व्यग्र होनेसे जो द्वादशावर्त्त वन्दना करनेका योग न आवे तो थोभवन्दन ही से गुरुको वन्दना करना. तथा वन्दना करके गुरुके पास पच्चखान करना. कहा हैं कि — जो स्वयं पहिले पच्चखान किया हो वही अथवा उससे अधिक गुरुसाक्षीस ग्रहण करना कारण कि, धर्मके साक्षी गुरु है. धर्मकार्य गुरु साक्षीसे करने में इतने लाभ हैं कि, एक तो 'गुरुसक्खिओ उ धम्मा' (गुरुसाक्षीस धर्म होता है ) जिनेश्वर भगवानकी आज्ञाका पालन होता है, दूसरा गुरुके वचनसे शुभ परिणाम उत्पन्न होनेसे अधिक क्षयोपशम होता है, तीसरा पूर्व धारा हो उससे भी अधिक पच्चखान लिया जाता है । ये तीन लाभ हैं | श्रावकप्रज्ञप्ति में कहा है कि
संतभिवि परिणामे गुरुमूलपवज्जमि एस गुणो । दढया आणाकरणं, कम्मखओवसमवुड | अ || १ || प्रथम ही से पच्चखान आदि लेनेके परिणाम होवें तो भी गुरुके पास जाने में यह लाभ है कि, परिणामकी दृढता होती है, भगवान की आज्ञा का पालन होता है और कर्मके क्षयोपशमकी वृद्धि होती है. ऐसे ही दिन के अथवा चातुर्मासके नियमादि भी योग होवे तो गुरु साक्षी ही से ग्रहण करना.