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( ३३२) भी स्वल्प ही ली जाती है. परन्तु वह भी प्रतिमाके ऊपरसे उतार कर नहीं ली जा सकती. भगवान्के भेरी, झालर आदि वाजिंत्र भी गुरु अथवा संघके कार्यके लिये बजाये नहीं जा सकते. यहां किसी किसीका मत ऐसा है कि, यदि कोई आवश्यक कार्य होवे तो देवके वाजिंत्र काममें लेना, परन्तु प्रथम उसके बदले में देवद्रव्य खांत अच्छी भेट ( नकरा) देना चाहिये, कहा है कि
मुलं विणा जिणाणं, उवगरणं चमरछत्तकलाई ।
जो वावारइ मूढो, नियकज्जे सो हवइ दुहिओ ॥ १ ॥ जो मूढपुरुष जिनेश्वरमहाराजके चामर, छत्र, कलश आदि उपकरण मूल्य दिये बिना अपने काममें लावे, वह दुःखी होता है। नकरा देने के बाद वापरनेको लिये हुए वाजिंत्र कदाचित् टूट जावें तो निजद्रव्यसे उन्हें ठीक कराके देना चाहिये, गृहकार्यके लिये किया हुआ दीपक दर्शन करने ही के लिये जो जिनेश्वरभगवान्की प्रतिमाके सन्मुख लाया गया हो तो इतने ही कारणसे वह देवदीप नहीं हो सकता. जो पूजा ही के निमित्त भगवान्के सन्मुख रखा हो, तो वह देवदीप होता है । मुख्यतः तो देवदीपके निमित्त कोडिया ( मट्टीके दीचे ) आदि अलग ही रखना, और पूजाके निमित्त दीपक किया हो तो उसके कोडिये, बत्ती अथवा घी, तैल अपने काममें न लेना, किसी मनुष्यने पूजा करनेवाले लोगोंके हाथ पैर धोनेके लिये