SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३२६) है । साधारणद्रव्य भी संघने दिया होवे तभी वापरना योग्य है, अन्यथा नहीं. संघने भी साधारणद्रव्य सातक्षेत्रों ही में काममें लेना चाहिये, याचकादिकको न देना. आजकलक्के व्यवहारमे तो जो द्रव्य गुरुके न्युछनादिकसे साधारणखाते एकत्र किया हुआ हो, वह श्रावक-श्राविकाओंको देनेकी कोई भी युक्ति दृष्टिमें नहीं आती. अर्थात् वह द्रव्य श्रावक श्राविकाको नहीं दिया जाता. धर्मशालादिकके कार्यमें तो वह श्रावकसे काममें लिया जा सकता है. इसी प्रकार ज्ञानद्रव्यमें से साधुको दिये हुए कागजपत्रादिक भी श्रावकने अपने उपयोगमें न लेना, वैसेही अधिक नकरा ( न्यौछावर ) दिये बिना उसमें अपने पुस्तकमें स्थापन करने के लिये न लिखवाना, साधु संबंधी मुहपत्तिआदिको काममें लेना भी योग्य नहीं. कारण कि, वह भी गुरुद्रव्य है. स्थापनाचार्य और नौकारवाली आदि तो प्रायः श्रावकोंको देनेही के लिये गुरुने वोहोरी होवे, और वे गुरुने दी हो तो उनको वापरनेका व्यवहार देखा जाता है । गुरुकी आज्ञा बिना साधु, साध्वीको, लेखकसे लिखवाना अथवा वस्त्रसूत्रादिकका बोहरना भी अयोग्य है इत्यादि. इस प्रकार देवद्रव्य ज्ञानद्रव्य आदि थोडा भी जो अपनी आजीविकाके निमित्त उपभोगमें लें, तो उसका परिणाम द्रव्यके प्रमाणकी अपेक्षा बहुत ही बडा व भयंकर होता है । यह जान कर विवेकी पुरुषोंने किंचितमात्र १ गुरुके सन्मुख खडे रह उनके ऊपरसे उतार भेंटकी तरह रखा हुआ,
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy