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(३१४) भी कहा है कि- देवद्रव्यसे तथा गुरुद्रव्यसे हुई द्रव्यकी वृद्धि परिणाममें अच्छी नहीं. क्योंकि, उससे इसलोकमें कुलनाश
और मृत्युके अनन्तर नरकगति होती है । नरकमें से निकल कर पांचसी धनुष लम्बा महान् मत्स्य हुआ. उस भवमें किसी म्लेच्छने उसके सर्वांगको छेदकर महान् कदर्थना करी. उससे मृत्युको प्राप्त हो चोथे नरकमें नारकी हुआ. इस प्रकार एक एक भव बीचमें करके सातों नरकोंमें दो दो बार उत्पन्न हुआ. पश्चात् लगातार तथा अंतरसे श्वान, सूबर, मेष, वकरा, भेड (घेटा), हरिण, खरगोश, शबर, (एकजातिका हरिण), शियाल, बिल्ली, मूषक, न्योला, मकडी, छिपकली, गोहेरा (विषखपरा), सर्प, बिच्छू, विष्ठाके कृमि, पृथ्वीकाय, अकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, शंख, सीप, जोंक, कीडी, कीडा, पतंग, मक्खी, भ्रमर, मत्स्य, कछुआ, गधा, भैंसा, बैल, ऊंट: खच्चर, घोडा, हाथी इत्यादि प्रत्येक जीवयोनियोंमें एक एक हजार बार उत्पन्न होकर सर्व मिल लाखों भव संसारमें भ्रमण करते पूरे किये. प्रायः सर्वभवों में शस्त्राघातआदि महाव्यथा सहन करके उसकी मृत्यु हुई पश्चात् बहुतसा पाप क्षीण होगया, तब वसन्तपुरनगरमें करोडाधिपति वसुदत्तश्रेष्ठीसे उसकी स्त्री वसुमतिके गर्भ में पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुआ. उसके गर्भमें रहते ही वसुदत्तका सर्व द्रव्य नष्ट होगया. पुत्रके जन्म होते ही उसीदिन वसुदत्तकी मृत्यु होगई और जब उसे पांचवा