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७८ वहां भोजन करना, अथवा दृष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध करना, ७९ शरीरके गुप्त अवयव खुले रखना, ८० वैद्यक करना, ८१ क्रय विक्रय आदि करना कराना, ८२ बिस्तर बिछाके सो रहना, ८३ जिनमंदिरमें पीने का पानी रखना. वहां पानी पीना अथवा बारह मास पिया जावे इस हेतुसे मंदिरके हौज में बरसातका पानी लेना, ८४ जिनमंदिर में नहाना, धोना, इन उत्कृष्ट भेदोंसे ८४ आशातनाएं हैं ।
बृहद्भाष्य में तो पांच ही आशातना कही है । यथाः१ अवर्ण आशातना, २ अनादर आशातना, ३ भोग आशातना, ४ दुःप्रणिधान और ५ अनुचितवृत्ति आशातना; ऐसी जिनमंदिर में पांच आशातना होते हैं । उसमें पालखी वालना, भगवान् के तरफ पीठ करना, बजाना, पग पसारना, तथा जिनप्रतिमाके सन्मुख दुष्टआसन से बैठना ये सब प्रथम अवर्णआशातना है । कैसे भी वस्त्र आदि पहेर कर, किसी भी समय जैसे वैसे शून्यमनसे जिनप्रतिमा की पूजा करना, वह दूसरी अनादरआशातना । जिनमंदिरमे पान सुपारी आदि भोग भोगना, यह तीसरी भोगआशातना है । यह आशातना करनेसे आत्मा के ज्ञान आदि गुणोंको आवरण आता है, इस लिये यह आशातना जिनमंदिरमे अवश्य त्याज्य है । रागसे, द्वेषसे अथवा मोहसे मनकी वृत्ति दूषित हुई हो, तो वह चौथी दु० प्रणिधानआशातना कहलाती है, वह जिनराजके लिये त्यागना चाहिये ।