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दायका अनुसरण करके संक्षेप मात्र श्राद्धविधि (श्रावकों की सामाचारी ) कहता हूँ ॥१॥
यहां श्रीमहावीर स्वामीको 'वीर जिन' इस नामसे संबो-- धन किया है, उसका कारण यह है कि, कर्मरूप शत्रुओंका समूल नाशकरना, पूर्ण तपस्या करना आदि कारणोंसे वीर कहलाता है, कहा है कि--रागादिकको जीतनेवाला "जिन" कहलाता है। कर्मका नाश करता है तथा तपस्या करता है, उसी हेतुसे वीर्य व तपस्यासे सुशोभित भगवान वीर कहलाता है । इसी प्रकार शास्त्रमें तीन प्रकारके वीर बतलाये हैं '१ दानवीर, २ युद्धवीर, ३ धम्मवीर भगवानमें ये तीनों वीरव होनेसे उनको वीर कहा गया है, यथा वार्षिकदानके समय करोडों स्वर्णमुद्राओंके दानसे जगतमें दारिद्यको मिथ्या करके १ मोहादिकके कुलमें हुवे व कितनेक गर्भ में (सत्तामें) रहे हुए दुर कर्म रूप शत्रुओंका नाश करके २ तथा फलकी इच्छा न रखते असाध्य ऐसी मोक्षदायक तपस्या करके ३ जो तीनों प्रकारकी वीर-पदवीके धारक हुए अर्थात् अतिशय दान देनेसे दानवीर हुए रागादिक शत्रुओंका समूल नाश करनेसे युद्धवीर हुए व कठिन तपस्यासे धर्मवीर हुए ऐसे तीनोंलोकके गुरु श्री महावीरकी वीर संज्ञा यथार्थ है। यहां 'वीरजिन' इस पदसे १ अपायापगमातिशय, २ ज्ञानातिशय, ३ पूजातिशय और ४ वचनातिशय ये चार अतिशय श्रीवीरभगवानके लिये सूचित कर दिये