________________
( १९९ )
चाहिये." ऐसा जानते हुए भी तूने भूमि पर पडा हुआ फूल जगज्ञासे भगवान् के ऊपर चढाया । उससे तू चांडाल हुआ । कहा है किउचिठ्ठे फलकुसुमं नेविज्जं वा जिणस्स जो देइ | सोनी गोअम्मं, बंधइ पायन्नजम्मंमि || १ | " पुरुष ऐंठा ( उच्छिष्ट ) फल, फूल अथवा नैवेद्य भगवान्को अर्पण करे, वह प्रायः परभवमें नीचगोत्र कर्म बांधता है । तेरी माताने पूर्वभव में रजस्वला होते हुए देवपूजा करी, उस कर्मसे यह चांडालिनी हुई " केवली के ऐसे वचन सुन वैराग्य से पुण्यसार राजाने दीक्षा ली । इसलिये भूमि पर पडा हुआ फूल सुगंधित हो तो भी वह भगवान्को नहीं चढ़ाना चाहिये । तथा किंचित् मात्र भी अपवित्रता हो तो भी भगवान् को नहीं छूना । विशेष कर स्त्रियोंने रजस्वला अवस्था में प्रतिमाको बिलकुल स्पर्श न करना चाहिये । कारण कि, भारी आशातनादि दोष लगता है ।
पूजा में पहनने के वस्त्रकी विधि.
नहा लेनेके बाद पवित्र, कोमल और सुगंधित कापायिकादि वस्त्र से अंग पोंछ, धोती उतार, दूसरा पवित्र वस्त्र पहरकर इत्यादियुक्तिसे धीरे २ चलते जलार्द्र भूमिको स्पर्श न करते पवित्र स्थान में आना । उत्तरदिशाको मुख करके चमकदार, नया, पूर्ण, चे जोड और चौडा ऐसे दो वत में से एक पहिरना तथा दूसरा ओढना। कहा है कि-