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तक प्रभात संध्याका समय कहलाता है । सूर्यविम्बके आधे अस्त से लेकर दो तीन नक्षत्र आकाश में न दीखें, तब तक सायंसंध्याका समय है । मल मूत्रका त्याग करना होवे तो जहां राख, गोवर, गायोंका रहेठाण, राफडा, विष्ठा आदि हो, वह स्थान तथा उत्तम वृक्ष, अग्नि, मार्ग, तालाब इत्यादिक, स्मशान, नदीतट तथा स्त्रियों तथा अपने वडीलोंकी जहां दृष्टि पडती होवे, ऐसे स्थान छोडना । ये नियम उतावल न हो तो पालना, उतावल होने पर सर्व नियम पालना ही चाहिये ऐसा नहीं ।
श्री ओघनिर्युक्तिआदिग्रंथों में भी साधुओं के उद्देश्यसे कहा है कि- जहां किसी मनुष्यका आवागमन नहीं, तथा जिस स्थान पर किसीकी दृष्टि भी नहीं पडती, जहां किसीको अप्रीति उपजनेसे शासनके उड्डाहका कारण और ताडनादिक होने का संभव नहीं, समभूमि होनेसे गिरनेकी शंका नहीं, जो तृण आदिसे ढका हुआ नहीं, जहां बिच्छू, कीडी आदिका उपद्रव नहीं, जहां की भूमि अनिआदि के तापसे थोडे समयकी अचित्त की हुई है, जिसके नीचे कमसे कम चार अंगुल भूमि अचित्त है, जो वाडी, बंगला आदि के समीपभाग में नहीं है, कमसे कम एक ही हाथ विस्तार वाला, चूहे कीडी आदिके बिल, त्रसजीव तथा जहां बीज ( सचित्त धान्यके दाने आदि ) नहीं ऐसे स्थान में मल मूत्रका त्याग करना | ऊपर तृण आदिसे ढंका