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तपस्या से करोड पल्योपमकी स्थिति पाता है । इस भांति यथाशक्ति दो २ घडी चौविहार बढावे, और उसी अनुसार नित्य करे तो उसे एकमास में पच्चखानके काल - मानकी वृद्धिके प्रमाण से उपवास, छट्ठ, अट्ठम इत्यादिक शास्त्रोक्त फल होता है । इस युक्ति से ग्रंथिसहित पच्चखानका उपरोक्त फल विचार लेना चाहिये । ग्रहण किये हुए सर्व पच्चखानका बारम्बार स्मरण करना । पच्चखानकी अपनी अपनी काल मर्यादा पूरी होते ही मेरा अमुक पच्चखान पूर्ण हुआ, ऐसा विचार करना । भोजन के समय भी पच्चखानका स्मरण करना । ऐसा न करने से कदाचित् पच्चखान आदिका भंग होना संभव है ।
अशनादि चारका विभाग.
अशन, पान, खादिम, स्वादिम, इत्यादिका विभाग इस प्रकार है । अन्न खाजा, मक्खन बडा आदि पक्वान्न, मांडी, सत्तू आदि सर्व जो कुछ क्षुधाका शीघ्र उपशमन करते हैं, उन्हें अशन कहते हैं. (१). छांछ, पानी, मद्य, कांजी आदि सर्व पान हैं (२). सब जातिके फल, सांटा, पोहे, सुखडी ( पंचमेल मिठाई ) आदि खाद्य हैं. (३). तथा सोंठ, हरडे, पीपल, मिर्च, जीरा, अजवान, जायफल, जावित्री, कसेरू, कत्था, खदिरवटिका, मुल्हेटी, तज, तमालपत्र, इलायची, लौंग, बायबिडंग, बिडनमक, अजमोद, कुलिंजन, पीपलामूल, कबाबचीनी, कचूर, मोथा, कपूर, संचल, हरड बहेडा, धमासा, खेर, खेजडा
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