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गर्म पानी त्रिदंड ( तीन उकाले आया हुआ) उकाला हुआ होवे तो अचित्त होनेसे साधुको ग्राह्य है, परंतु ग्लानादिकके निमित्त तीन प्रहर उपरान्त भी रखना । अचित्त जल ग्रीष्मऋतुमें पांच प्रहर उपरांत, शीतऋतुमें चार प्रहर उपरांत और वर्षाऋतुमें तीन प्रहर उपरांत सचिन होता है । ग्रीष्मऋतुमें काल अत्यन्त शुष्क होनेसे जलमें जीवकी उत्पत्ति होनेमें बहुत समय ( पांच प्रहर) लगता है । शीतऋतुमें काल स्निग्ध होनेसे ग्रीष्मकी अपेक्षा थोडा समय ( चार प्रहर ) लगता है,
और वर्षाऋतुमें काल अतिशय स्निग्ध होनेसे शीतऋतुकी अपेक्षा भी थोडा समय ( तीन प्रहर ) लगता है । जो उपरोक्त कालसे अधिक रखना होवे तो, उसमें राख डालना, जिससे पुनः सचित्त न हो । ऐसा १३६ वें द्वारमें कहा है । जो अप्कायादिक ( जलआदि ) अग्नि आदिक बाह्य शस्त्रका सम्बन्ध हुए बिना स्वभाव ही से अचित्त होगया हो, उसे केवली, मन:पर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी तथा श्रुतज्ञानी अचित्त है, ऐसा मानते हैं तो भी मर्यादा भंगके प्रसंगसे उसका सेवन नहीं करते । सुनते हैं कि काई तथा त्रस जीवसे रहित और स्वभावसे अचित्त हुए पानीसे भरा हुआ भारी द्रह पास होने पर भी भगवान श्रीवर्द्धमान स्वामीने अनवस्था-दोष टालनेके निमित्त और श्रुतज्ञान प्रमाणभूत है ऐसा दिखानेके लिये तृपासे अत्यन्त पीडित तथा उसासे प्राणांत संकटमें पड़े हुए अपने शिष्योंको