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(१५९) आहार है वह न मिलनेसे और उपक्रमसे लवणादि वस्तुका परिणाम होता है अर्थात् वे अचित्त होजाती हैं। उपक्रम याने शस्त्र. वह (शस्त्र) १ स्वकाय, २ परकाय और ३ उभयकाय ऐसे तीन भेदसे तीन प्रकारका है । लवणजल (खारा पानी) मीठे जलका शस्त्र है, यह स्वकाय शस्त्र है. अथवा कृष्णभूमि (काली जमीन) पांडुभूमि (शफेदभूमि) का स्वकाय शस्त्र है । जलका अग्नि तथा अग्निका जल जो शस्त्र है वह परकाय शस्त्र है । मिट्टीसे मिश्र हुआ जल शुद्धजलका शस्त्र है, इसे उभयकाय शस्त्र कहते हैं। सचित्त वस्तुके परिणाम (अचित्त) होनेके इत्यादिक कारण हैं । उत्पल (कमल विशेष) और पद्म (कमल विशेष) जलयोनि होनेसे धूपमें रखे जाय तो एक प्रहरभर भी सचित्त नहीं रहते अर्थात् प्रहर पूरा होनेके पहिले ही अचित्त होजाते हैं । मोगरा, चमेली, तथा जुहीके फूल उष्णयोनि होनेसे उष्ण प्रदेशमें रखे जाय तो बहुत काल तक सचित्त रहते हैं। मगदन्तिका के फूल पानीमें रखें तो एक प्रहरभर भी सचित्त नहीं रहते । उत्पलकमल तथा पद्मकमल पानीमें रखें तो बहुत समय तक सचित्त रहते हैं । पत्ते, फूल, बीज न पडे हुए फल तथा वत्थुला (शाकविशेष) आदि हरितकाय अथवा सामान्यतः तृण तथा बनस्पतिका गट्ठा अथवा मूल नाल (जड) सूखने पर अचित्त हुए समझना चाहिये । इसप्रकार कल्पवृत्ति में कहा है । श्रीभगवतीसूत्रके छठे शतकके सातवें उद्देशामें शालि