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समाधान:- व्यवहारनयके मतसे ये भावश्रावक ही हैं , क्योंकि वैसा ही व्यवहार है । निश्चयनयके मतसे सपत्नीसमान और खरंटक समान ये दो प्रायः मिथ्यादृष्टि समान द्रव्यश्रावक और शेष सब भावश्रावक हैं। कहा है कि
" चिंतइ जइकज्जाई, न दिदुखलिओवि होइ निन्नेहो । एगंतवच्छलो जइजणस्स जणणीसमो सड्डो ॥१॥ हिअए ससिणेहो चिअ, मुणीण मंदायरो विणयकम्मे । भायसमो साहूणं, पराभवे होइ सुसहाओ ॥ २ ॥ मित्तसमाणो माणा इसिं रूसइ अपुच्छिओ कज्जे । मन्नतो अप्पाणं, मुणीण सयणाउ अब्भहि ॥ ३ ॥ थद्धा छिद्दप्येही, पमायखलिआणि निच्चमुच्चरइ । सडो सवत्तिकप्पो साहूजणं तणसमं गणः ॥ ४ ॥" द्वितीयचतुष्के--" गुरुभणिओ सुत्तत्थो, बिबिज्जइ अवितहो मणे जस्स । सो आयंससमाणो, सुसावओ वनिओ समए ॥१॥ पवणेण पडागा इव, भामिज्जइ जो जणेण मूढेण । अविणिच्छयगुरुवयणो, सो होइ पडाइआतुल्लो ॥२॥ पडिवन्नमसग्गाहं, न मुअइ गीअत्थसमणुसिट्ठोवि । थाणुसमाणो एसो, अपओसी मुणिजणे नवरं ॥ ३ ॥ उम्मग्गदेसओ निन्दवोसि मूढोसि मंदधम्मोसि । इअ संमंपि कहतं खरंटए सो खरंटसमो ॥ ४ ॥