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इतनेही में शुकराजको आता हुआ देखकर आकुल व्याकुल हुआ और हाहाकार कर मंत्रीको कहने लगा कि, "जिसने मरी दोनों स्त्रियां व विद्याएं हरण करी वही दुष्ट विद्याधर मेरा रूप करके मुझपर उपद्रव करनेको आ रहा है अतः मधुर वचनसे किसी भी प्रकार उसे वहींसे वापस करो । बलवान पुरुषके सन्मुख शान्तिसे बर्ताव करना यही अपना भारी बल समझना चाहिये."
"दक्ष पुरुषोंकी सहायतासे दुस्साध्य कार्य भी सुस्साध्य हो जाता है " यह विचारकर मंत्री बहुतसी योग्य व्यक्तियोंको साथ लेकर वहां गया. इन लोगोको अपने स्वागत के लिये आये हुए समझकर शुकराज अत्यन्त प्रसन्न हुआ तथा विमानसे उतरकर आम्रवृक्षके नीचे आया. विवेकी मंत्री भी वहां गया तथा प्रणामकर कहने लगा कि, "हे विद्याधरेन्द्र ! आपकी शक्ति अपार है । कारण कि, आपने हमारे स्वामीकी दोनों स्त्रियां तथा सब विद्याएं हरण करली है । अब शीघ्र प्रसन्न हो आप वेगसे अपने स्थानको पधारिये ।"
मंत्रीकी यह बात सुनकर शुकराज आश्चर्य कर चिन्तने लगा कि, "इसे चित्तभ्रम हुआ, मस्तिष्क फिर गया, त्रिदोष हुआ कि भूत लगा है? तथा बोला कि, “तूने यह क्या कहा? मैं शुकराज हूं !" मंत्रीने कहा; हे विद्याधर ! क्या शुकराजकी तरह तू मुझे भी ठगना चाहता है ? मृगध्वजराजाके वंश रूप