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उसे समुद्र में डाल दिया । जिस प्रकार लेनदारका कर्ज ब्याज सहित चुकाना पडता है उसी भांति पूर्वभवके किये हुए कर्म भी यथाक्रम भोगने पडते हैं ।
तेरी दोनों स्त्रियां तेरे वियोग से संसार-मोह छोडकर तपस्विनी होगई तथा मासखमण मासखमण (मासिक उपवास) रूप तपस्या करने लगी । विधवा होने पर कुलीन स्त्रियोंको यही उचित है । मनुष्य भव पाकर यह भव तथा पूर्व भव दोनों ही मुफ्त | गुमा बैठे ऐसा कौन मूर्ख है ?
एक दिन अधिक तृषा लगने से व्याकुल होकर गौरीने एक दासी के पाससे बहुत बार पानी मांगा । दुपहर का समय होनेके कारण निद्राके वश हुई उस दासीने ढीठ-मनुष्यकी भांति कुछ भी उत्तर नहीं दिया । गौरी यद्यपि स्वभावसे क्रोधी नहीं थी तथापि उस समय उसने दासी पर बहुत क्रोध किया । प्रायः तपस्वी, रोगी, और क्षुधा तथा तृषासे पीडित मनुष्योंको थोडेसे कारण पर ही बहुत क्रोध चढ आता है ।
गौरीने क्रोध से कहा- “रे नीच ! मरे हुए मनुष्य की भांति तूं मुझे जबाब नहीं देती है इसका क्या कारण है ? " इस तरह तिरस्कारयुक्त वचन सुनने पर दासी उठी व मधुर बचनों से गौरी का समाधान करके उसे पानी पिलाया । परन्तु गौरीने, दुष्टवचनोंके कारण बहुत दुःखसे भोगने के योग्य कर्म संचित किया । हँसी में कहे हुए कुवचनों से भी जब कर्म संचय होता है तो क्रोधस