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________________ आज्ञा की आराधना पर दृष्टांत सम्यक्त्व प्रकरणम् प्रमुदित वाणी में सुरभिश्री को देखने की इच्छा से पटहवादकों को आदेश दिया-डुगडुगी पिटवाकर नागरिकों को आज्ञा दो कि एकाग्र मन से हे मनुष्यों सुनो! प्रातःकाल राजा अन्तःपुर परिवार सहित वसन्त क्रीड़ा के लिए पूर्वी उद्यान में जायेंगे अतः नागरिक पश्चिमी उद्यान में वसन्त क्रीड़ा करें। आरक्षक ने राजा द्वारा कथित आदेश उद्घोषित करवा दिया। क्योंकि अनुलङ्घया हि राजाज्ञा सतां गोत्र स्थिर्तियथा । अर्थात् सत्पुरुषों की कूल मर्यादा ही ऐसी है कि राजाज्ञा अनुलंघनीय है। उस राजाज्ञा को सुनकर यौवन के उन्माद की मदिरा के मद से विह्वल, अदीर्घदर्शी, मूर्ख, पापी, कुलकलंकी, समान वयवाले, दुर्दान्त कुछ उच्छृखल दुष्ट युवा धनिक पुत्र रमणियों का स्मरण करते हुए परस्पर इस प्रकार बोले-धिक्कार है हमारे धन को! धिक्कार है हमारे जीवन को! धिक्कार है हमारे रूप और यौवन को! क्योंकि हमने राजा के अंतःपुर की रूप ललनाओं को नहीं देखा। वे सुभगा स्त्रियाँ हमें अनुराग वशीभूत देखकर अपने दक्ष कटाक्षों द्वारा काम बाणों की तरह हमारे चित्त का नाश करेंगी। अतः हमें वहाँ चलकर अपनी दृष्टि को सफल बनाना चाहिए। अपने मनोरथों को पूर्ण करने से हमारा पुरुष जन्म सार्थक हो जायगा। इस प्रकार विचार करके वे दुरात्माएँ विकारी के वेष की तरह स्वयं को बनाकर विपुल कामोद्रेक से प्रभात होने से पहले ही जिस वन में राजा आनेवाले थे उस वन के गहन वृक्षों पर चढ़कर छिपकर बैठ गये। सभी नागरिक समग्र सामग्री से युक्त होकर पश्चिमोद्यान में आनंद स्यन्द को पाने के लिए आ गये। राजा के अंगरक्षक पूर्वोद्यान में अन्वेषण करके राजा की रक्षा के लिए पास में लक्ष्मण रेखा खींच दी, जिससे पूर्व स्थित उद्यान में कोई जाने न पाये। सूर्योदय की वेला में राजा कुमार-कुमारियों आदि अपने अन्तःपुर से घिरा हुआ पूर्वोद्यान में जाने के लिए चला। तीक्ष्णसूर्य के ताप को सन्मुख देखकर यशसिन्धु जगत्बन्धु राजा ने अपने भृत्यों से कहा-अहो! सूर्य के सम्मुख, समागम से वसन्त क्रीड़ा नहीं हो पायगी। कृतान्त का जनक यह सूर्य मुझे अचाक्षुस बना देगा। भृत्यों ने कहा-हम कुमतिवालों को इस प्रकार का विचार ही पैदा नहीं हुआ। पर कोई बात नहीं देव! आप पश्चिमवाले उद्यान में पधार जायें। क्योंकि उग्र-तेजवाला सूर्य संग्राम करता हुआ पूर्व से पश्चिम की ओर जाते-जाते अंत में क्षीण हो जायगा। ___अतः राजा तत्काल ही पश्चिम के उद्यान की ओर चला तथा नागरिकों को पूर्वोद्यान की ओर भेज दिया। तब नृप की पत्नियाँ-अनुचरी आदि आगे रहे हुए थे, वे राजा से पहले ही उद्यान में पहुँच गयीं। रथों से उतरकर सभी आच्छादित स्थानों में सुखासीन हो गये, मानों रंगभूमि में नाटक के पात्र की तरह यमराज के हाथों से छूटे हों। आगे गये हुए कुछ मनुष्यों द्वारा राजा की रानियों को देखा गया। उन्हें देखते ही लोकोत्तर खुशी को प्राप्त हुए नागरिकों ने प्रणाम किया। तत्काल ही वहाँ राजा के साथ रहे हुए अंगरक्षक वहाँ आ गये और उन्हें फटकारा कि क्यों राजरानियों को देख रहे हो? उधर पूर्वोद्यान में लोगों को आते हुए देखकर जब यह जाना कि राज-परिवार वसन्त क्रीड़ा के लिए इस उद्यान में नहीं आ रहा है, तो वे पूर्व में बैठे हुए राजरानियों को देखने की इच्छावाले दुष्ट दुःखित होकर शाखाओं से भूमि पर उतरे। [अंगरक्षकों के द्वारा राजवृतान्त जाना, तो पश्चिमोद्यान की तरफ जाने के लिए उद्यत हुए।] उन्हें ऐसा करते देख अंगरक्षकों ने पकड़ लिया और कहा-हे दुरात्माओं! तुमने राजाज्ञा भंग की है। इस प्रकार कहकर उन्हें पकड़कर ले गये। ठीक ही है ___ 27
SR No.022169
Book TitleSamyaktva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata N Surana
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages382
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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