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________________ उपयोग द्वार सम्यक्त्व प्रकरणम् औदारिक योग -ये नौ होते हैं। यथाख्यात में तैजस कार्मण तथा औदारिक मिश्र मिलाकर ग्यारह योग होते हैं। असंयम में आहारक द्विक रहित तेरह योग होते हैं। चक्षु दर्शन में कार्मण व औदारिक मिश्र रहित तेरह योग होते हैं। अचक्षु-अवधि में पन्द्रह तथा केवल-दर्शन में आदि व अन्तिम मन-वचन योग, औदारिक द्विक तथा कार्मण ये सात योग होते हैं। छः लेश्या में पन्द्रह ही योग होते हैं। भवी में पन्द्रह तथा अभवी में आहारक द्विक को छोड़कर तेरह योग होते हैं। क्षायिक-क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में सभी पन्द्रह योग, औपशमिक, सास्वादन तथा मिथ्यात्व में आहारक द्विक को छोड़कर तेरह योग, मिश्र में मन-वचन के आठ तथा औदारिक-वैक्रिय ये दस योग होते हैं। संज्ञी में पन्द्रह ही योग होते हैं। असंज्ञी में औदारिक द्विक, वैक्रिय द्विक, कार्मण तथा अंतिम भाषा योग - ये छः योग होते हैं। आहारक में कार्मण रहित चौदह और पन्द्रह योग भी बताये हुए हैं तथा अनाहारक में एक कार्मण योग होता ___|| उपयोग-द्वार ।। मनुष्य गति में बारह उपयोग, देव-नारक-तिर्यंचों में मनःपर्याय तथा केवलि द्विक को छोड़कर नौ उपयोग होते हैं। ___ एकेन्द्रिय-बेइन्द्रिय-तेइन्द्रिय में मति-श्रुत अज्ञान तथा अचक्षु दर्शन रूप तीन उपयोग, चतुरिन्द्रिय में पूर्व के तीन तथा चक्षु दर्शन - ये चार उपयोग तथा पंचेन्द्रियों में सभी बारह उपयोग होते हैं। पाँच स्थावर में दो अज्ञान एक दर्शन तथा त्रसकाय में, योग में और वेद में सभी में बारह उपयोग होते हैं। कषायों में उपरोक्त में से केवलि द्विक को छोड़कर दस उपयोग होते हैं। ज्ञान-चतुष्क में ज्ञान चतुष्क तथा दर्शन त्रिक - ये सात उपयोग होते हैं। केवल ज्ञान में केवलदर्शन सहित दो उपयोग होते हैं। अज्ञान त्रिक में कार्मणग्रन्थिक मतानुसार तीन अज्ञान तथा दो दर्शन होते हैं। पर सैद्धान्तिक मतानुसार प्रज्ञापना के अट्ठारहवें पदवृत्ति में कहे गये के अनुसार मिथ्यादृष्टि के विभंगज्ञान के साथ सामान्य रूप से अवधि दर्शन हो सकता है। तत्त्वार्थसूत्र में मिथ्यादृष्टि को अवधिदर्शन नहीं माना गया है। देश-संयम में तीन ज्ञान - तीन दर्शन रूप छः उपयोग, सामायिक-छेदोपस्थापनीय-परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय में चार ज्ञान, तीन दर्शन रूप सात उपयोग, यथाख्यात में केवल-द्विक सहित नौ उपयोग तथा असंयम में मनःपर्यव ज्ञान तथा केवल-द्विक को छोड़कर नौ उपयोग होते हैं। चक्षु-अचक्षु दर्शन में केवली द्विक को छोड़कर दस उपयोग, अवधि दर्शन में चार ज्ञान, तीन दर्शन रूप सात उपयोग तथा केवल दर्शन में केवली-द्विक दो उपयोग होते हैं। पाँच लेश्या में केवली द्विक रहित दस उपयोग तथा शुक्ल लेश्या में बारह उपयोग होते हैं। भवी में बारह तथा अभवी में तीन अज्ञान दो दर्शन रूप पाँच उपयोग होते हैं। क्षायिक में अज्ञान को छोड़कर नौ उपयोग, क्षायोपशमिक, औपशमिक के ज्ञान-चतुष्क दर्शनत्रिक रूप सात उपयोग, मिश्र में तीन ज्ञान, तीन दर्शन और अज्ञानमिश्र, सास्वादन और मिथ्यात्व में तीन अज्ञान, दो दर्शन रूप पाँच उपयोग होते हैं। संज्ञी में बारह तथा असंज्ञी में दो ज्ञान, दो अज्ञान, दो दर्शन रूप छः उपयोग होते हैं। 281
SR No.022169
Book TitleSamyaktva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata N Surana
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages382
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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