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________________ सम्यक्त्व प्रकरणम् जीव तत्त्व ६. आश्रव का निरोध करना संवर है। ७. विपाक से अथवा तपस्या से कर्म का परिशाटन करना निर्जरा है। ८. जीव तथा कर्म का गाद आश्लेष बन्ध है। ९. सर्वकर्म से मुक्त आत्मा की स्थिती मोक्ष है। ये नौ तत्त्व सिद्धान्त में कहे हुए प्रकार से जानने चाहिए, लेकिन कुतीर्थियों द्वारा कल्पित नहीं जानना चाहिए।।१।।२०७।। अब "जैसा उद्देश, वैसा निर्देश" के कारण जीव तत्त्व का वर्णन किया जाता हैं - एगयिह दुविह-तिविहा-चउहा-पंचविह छव्यिहा जीया । चेयण तस इयरेहिं येयगइकरणकाएहिं ॥२॥ (२०८) जीव एक प्रकार का भी होता है - चेतन लक्षणवाला होने से। चेतना रूप से एकविधता समस्त जीवों के अव्यभिचारी होती है। जो त्रासित होते हैं, वे त्रस हैं। उससे इतर स्थावर हैं। उनका भाव तत्त्व है, उससे संपूर्ण जीव राशि चर तथा अचर रूप होने से दो प्रकार की है। इस प्रकार आगे भी लक्षणों की व्यापकता जान लेनी चाहिए। स्त्री वेद, पुरुष वेद तथा नपुंसक वेद से जीव तीन प्रकार का है। नरक, तिर्यंच मनुष्य व देव गति की अपेक्षा से जीव चार प्रकार का है। स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियों की अपेक्षा से जीव पाँच प्रकार का है। पृथ्वी-काय आदि छः कायों की अपेक्षा से जीव छः प्रकार का है।।२।२०८।। तथा पुढवी-आउ-तेऊ-याऊ-यणस्सई तहेय बेइंदि । तेईंदिय-चरिंदिय- पंचदियभेयओ नवहा ॥३॥ (२०९) पृथ्वीकाय, अप्काय तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिद्रिय तथा पंचेन्द्रिय के भेद से जीव नौ प्रकार का है।।३।।२०९।। तथा - एगिदियसुहुमियरा सन्नियरपणिदिया सबितिचउ । पज्जत्तापज्जत्ताभेएणं चउदसग्गामा [सभूअगामा] ॥४॥ (२१०) एकेन्द्रिय के सूक्ष्म व बादर दो भेद है। सूक्ष्म नाम कर्म के उदय से संपूर्ण-लोक-व्यापी निरतिशायिओं द्वारा अदृश्य सूक्ष्म जीव होते हैं। इससे इतर बादर नाम कर्म के उदय से प्रति नियत स्थान वर्ती जीव बादर होते हैं। मन के विज्ञान से युक्त जीव संज्ञी कहलाते हैं। उससे इतर असंज्ञी है। इस प्रकार सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउन्द्रिय, असंज्ञी पचेन्द्रिय तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय ये ७ भेद हुए। इन सात के पर्याप्त तथा अपर्याप्त मिलकर चौदह भेद हुए। ये चौदह ग्राम अर्थात् जीव-निवास के स्थान हुए।।४।२१०॥ पुनः दूसरे प्रकार से जीव के भेदों को कहते हैं - पुढविदगअगणिमारुयवणस्सइणंता पणिंदिया चउहा । यणपत्तेया विगला दुविहा सव्येवि बत्तीसं ॥५॥ (२११) पृथ्वी, अप्, तेउ, वायु तथा साधारण वनस्पति इन पाँचों के सूक्ष्म-बादर, पर्याप्त तथा अपर्याप्त ये सभी 268
SR No.022169
Book TitleSamyaktva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata N Surana
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages382
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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