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चक्रदेव की कथा
करते 'अमर' यह शब्द उच्चारण किया जिससे उसका नाम अमर रक्खा गया। ____ इधर द्रोणक मरकर धूमप्रभा में बारह सागरोपम के आयुष्य से नारक हुआ। पश्चात् स्वयंभूरमण समुद्र में मत्स्य होकर पुनः उसी नारकी में गया । तदनन्तर कितनेक भव भ्रमण करके उसी नगर में नन्दावर्त नामक श्रेष्ठी की श्रीनन्दा नाम्नी स्त्री के उदर से नन्दयंती नाम की पुत्री हुई।
भवितव्यता वश उक्त नन्दयंती का पूर्णभद्र से पाणिग्रहण किया। वह पूर्व कर्म वश पति को वंचन करने में तत्पर रहने लगी। उसके सेवकों ने यह बात जानकर पूर्णभद्र को कहा किहे स्वामिन् ! आपकी स्त्री असत्य उत्तर और कूटकपट की खानि के समान है, किन्तु उसने यह बात न मानी ।
किसी समय नन्दयती ने दो बहुमूल्य कुडल छिपा कर आकुल हो पति से कहने लगी कि- कुडल कहीं गिर गये । पूर्णभद्र ने स्नेह वश उसे पुनः नये कुडल बनवा दिये, इस तरह वह हरेक आभूषण छिपाती गई व पूर्णभद्र नये २ बनवा कर देता रहा। ___ एक दिन उसने स्नान करते समय अपने हाथ की रत्नजड़ित अंगूठी उसे दी, जब संध्या को वापस मांगी तो वह बोली कि- वह तो मेरे हाथ में से कहीं गिर पड़ी। तब पूर्णभद्र अति आतुर हो हर जगह उसकी शोध करने लगा । इतने में अपनी स्त्री के संदूक में जितनी वस्तुएँ गुम हो गई, कहने में आई थीं वे सब यथावत् पड़ीं देखीं । तब उक्त सन्दूक हाथ में ले वह मन में तर्क करके विचार करने लगा कि- ये कुडलादिक आभूषण क्या उसने गये हुए पुनः शोधकर इसमें रखे होंगे कि मूल ही से छिपा रखे होंगे?