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अक्र ूरता गुण पर
इससे वे सम्पूर्ण धनमाल जहाज में भरकर रत्नद्वीप की ओर रवाना हुए, इतने में कुरंग के कान में क्रूरता खूब लग कर कहने लगी कि तेरे इस भागीदार भाई को मारकर ये सम्पूर्ण द्रव्य तू अपने स्वाधीन कर क्योंकि इस जगत् में सब जगह धनवान् ही सुजन माने जाते हैं । इस प्रकार वह नित्य उसे उत्तेजित करती, और उसके चित्त में भी यही बात बैठती गई, इससे उसने समय पाकर अपने भाई सागर को धक्का देकर समुद्र में डाल दिया । सागर अशुभ ध्यान में रह दरिया (समुद्र) के पानी से पीड़ित होकर मृत्यु वश हो तीसरी नरक में नारकी हुआ ।
इधर कुरंग अपने भाई का मृत कार्य कर हृदय में प्रसन्न होता हुआ ज्योंही थोड़ी दूर गया होगा त्योंही जहाज झट से फूट गया। जहाज के सब लोग डूब गये व सर्व माल गल गया तो भी कुरंग को एक पटिया मिल जाने से वह जैसे तैसे चौथे दिन समुद्र के किनारे आ पहुँचा | ( इतने दुःखी होते भी ) वह विचारने लगा कि अभी भी धनोपार्जन करके भोग भोगूंगा । ऐसा खूब सोच कर वन में भटकने लगा । इतने में एक सिंह ने उसको मार डाला और वह धूमप्रभा नामक नरक में पहुँचा ।
पश्चात् वे दोनों संसार भ्रमण करके जैसे तैसे अंजन नामक पर्वत में सिंह हुए, वे एक गुफा के लिये युद्ध करके मृत्यु को प्राप्त हो चौथे नरक में गये । तदनन्तर सपे हुए वहां एक निधान के लिये महायुद्ध करते हुए शुभध्यान के अभाव धूमप्रभा नामक नारक पृथ्वी में गये ।
तत्पश्चात् बहुत से भव भ्रमण कर एक वणिक की स्त्रियों के रूप में हुए । यहां वे पति के मरने के बाद द्रव्य के लिये