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प्रभास की कथा
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दूसरों को भी नहीं ठगना चाहिये तो फिर स्वामी को ठगना यह कैसी बात है ? तब वह बोला-हे देव ! यह तो प्रतिबिम्ब का संक्रमण हुआ है । यह कहकर उसने परदा नीचे किया तो राजा ने वहां सामान्य भूमि ही देखी।
तब विस्मित होकर राजा ने पूछा कि-ऐसी भूमि किस लिये बनाई है ? तब प्रभास बोला कि-हे देव ! ऐसी भूमि में एक तो चित्र विशेष स्थिर रहते हैं। दूसरे रंगों की कांति अधिक स्फुरित होती है। तीसरे चित्रित आकार अधिक शोभते हैं और चौये दर्गकों को अधिकाधिक भावोल्लास होता है । यह सुन उसके विवेक पर प्रसन्न हुए राजा ने उसे दुगुना इनाम दिया व साथ ही कहा कि अब मेरी इस वर्तमान चित्रों वाली चित्र सभा को जैसी है वैसी हो रहने दे, कि जिससे सब से अपूर्व प्रसिद्धि होगी । इस बात का उपनय यहां इस प्रकार है। ___ साकेतपुर सो संसार है । राजा सो आचार्य है। सभा सो मनुष्य गति है। चित्रकार सो भव्य जीव है और चित्रसभा की भूमि सो आत्मा है। वैसे ही भूमि परिकर्म सो सद्गुण हैं और चित्र सो धर्म है । आकार सो व्रत हैं । रंग सो नियम हैं
और भावोल्लास सो जीव का वीर्य है। इस प्रकार प्रभास नामक चित्रकार के समान पंडितों ने अपनी आत्मभूमि निर्मल करना चाहिये, कि जिससे उसमें उज्वल धर्मरूपी विचित्र चित्र अनुपम शोभा पा सके।
इस भांति प्रभास की कथा है। - धर्म दो प्रकार का है:-श्रावक का धर्म और यति का धर्म, श्रावक धर्म के पुनः दो भेद हैं । अविरत और विरत । अविरत