________________
भीमकुमार की कथा
२८२
शु
इसमें मिध्यात्वरूप सर्प रहता है तथा अशुभ अभ्यवसायरूप करक ( घोर खोदे वा बिज्जू) वसते हैं, वैसे ही स्नेहरूप स्तम्भ लेकर इसमें बहुत से भूत घूमते फिरते हैं। व इसमें जहां देखो वहां कलह कंकास रूप थालियों की खड़खड़ाहट होती है और अनेक जाति के उद्बळे गजनक करुण रुदन के स्वर सुनाई देते हैं तथा स्थान स्थान पर गुप्त धन के भांडार रूप भस्म के ढेर और कृष्णादिक अशुभ लेश्यावाली सुखवृद्धि रूप शियालिनी से यह विकराल लगता है ।
अति दुस्सह अनेक आपत्तियों रूप शकुनिकाओं से यह भयानक है व इसमें कपटी दुर्जन रूप अरिष्ट ( अशुभ सूचक चिह्न ) स्थित हैं तथा इसमें अज्ञान रूप मातंग ( चांडाल ) रहते हैं । अतः इस संसार रूप स्मशान में विषय रूप विषम कीचड़ में फंस जाते हैं, उनको स्वप्न में भी सुख कहाँ से हो ?
जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तपरूप सार सुभटों को चार दिशाओं में उत्तर साधक रूप से स्थापित कर सुसाधु की मुद्रा धारण कर, जिन-शासन रूप मण्डल में बैठकर, साहस रख, दो प्रकार की शिक्षारूप शिखाबंध दे, मोहपिशाच आदि इष्ट में विघ्नकारियों को दूरकर, शान्त मन रख, इन्द्रियों का प्रचार रोककर एकाग्रता से सामाचारी रूप नवीन विचित्र पुष्पों से सिद्धान्त रूप मन्त्र का जप विधि पूर्वक करने में आवे तो सम्पूर्ण मनवांछित सुख प्राप्त होते हैं और उनका जाप बढ़ते बढ़ते परम निर्वृति (मुक्ति) मिलती है।
इस प्रकार के भावार्थ युक्त गुरुवचन सुनकर हरिवाहन राजा भयंकर स्मशान रूप संसार में वसते डरने लगा ।
जिससे उसने भीम कुमार को राज्य देकर अनेक लोगों के