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परहितार्थकारिता गुण पर
चली। किन्तु अब तेरे माता पिता तथा नगरलोक तेरे गुणों का स्मरण करके रोते हैं । यह मैंने कार्यवश वहां जाते देखा । जिससे किसी भांति उनको धीरज देकर उनके सन्मुख ऐसी प्रतिज्ञा ली है कि, दो दिन के अन्त में मैं भीमकुमार को मित्र समेत यहां ले आऊंगी व मैं ने कहा कि-भीमकुमार ने तो अनेक पुरुषों को जैन-धर्म में स्थापित किया है और महान करुणा करके बहुत से व्यक्तियों को मरने से बचाया है। वह अपने मित्र व हितचिंतक के साथ कनकपुर में क्षेमकुशलता पूर्वक स्थित है । अतः हर्ष के स्थान में तुम विषाद मत करो।
यह सुन कुमार उत्सुक होकर वहां जाने को उद्यत हुआ । इतने में आकाश में भेरी और भंभा का आवाज गूजने (उछलने) लगा। इतने ही में विमानों की पंक्ति के मध्य के विमान में स्थित कमल समान मुखवाली एक देवी नजर आई, कि जिसको कान्ति से दशों दिशाओं में अंधकार दूर होगया था। तब “यह क्या है ?" इस प्रकार कहते हुए, राक्षस तथा हाथ में मुद्गर धारण किये हुए यक्ष व हाथ में दीप्तिमान कर्तिका युक्त काली आहे शीघ्र तैयार हुए।
इस समय भीमकुमार तो भीम के समान निर्भय खड़ा था इतने में देव व देवियां कुमार के समीप ऊपर आ उसे बधाई देने लगे कि-हे हरिवाहन राजा के पुत्र ! तेरी जय हो । तू चिरजीवि हो, प्रसन्न रहो ! ऐसा कहकर उन्होंने कमलाक्षा यक्षिणी का आगमन सूचित किया । अब वह यक्षिणी भी विमान से उतर कर कुमार को प्रणाम कर उचित स्थान पर बैठ कर इस प्रकार विनन्ती करने लगी। . हे कुमार ! तू मुझे सम्यक्त्व देकर विंध्य पर्वत की गुफा में रात्रि को रह गया था। वहां मैं प्रातः काल मेरे परिवार